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श्री सूत्रकृताङ्ग सूत्रम् बाला बला भूमिमणुक्कमंता, पबिज्जलं लोहपहं च तत्रं । जंसीऽभिदुग्गंसि पवजमाणा, पेसेव दंडेहिं पुराकरंति ॥५॥ छाया - बालाः बलाद् भूमि मनुक्राम्यमाणाः पिच्छिलां लोहपथमिवत्तप्ताम् ।
___ यस्मिन् अभिदुर्गे प्रपद्यमानाः प्रेष्यानिव दण्डैः पुरः कुर्वन्ति ॥
अनुवाद - परमाधामी देव विवेकशून्य नारकीय जीवों को प्रज्वलित लौहपथ-लोहे के मार्ग के समान परितप्त भूमि पर नारकीय जीवों को बलपूर्वक चलाते हैं । खून और मवाद जहाँ कीचड़ की ज्यों फैले हुए हैं, वहाँ उन्हें चलने हेतु बाध्य करते हैं । जहाँ किसी दुर्गम स्थान की ओर जाते हुए नारकीय प्राणी रुकने लगते हैं, तब वे नरकपाल बैल की ज्यों डंडे आदि से मारकर उन्हें आगे चलाते हैं ।
टीका - 'बाला' निर्विवेकिनः प्रज्वलितलोहपथमिवतप्तां भुवं 'पविज्जलं' ति रूधिरपूयादिना पिच्छिलां बलादनिच्छन्तः 'अनुक्रम्यमाणाः' प्रेर्यमाणाविरसमारसन्ति, तथा 'यस्मिन्' अभिदुर्गे कुम्भीशाल्मल्यादौ प्रपद्यमाना नरकपालचोदिता न सम्यग्गच्छन्ति, ततस्ते कुपिताः परमाधार्मिकाः 'प्रेष्यानिव' कर्मकरानिव बलीवर्धवद्वा दण्डैर्हत्वा प्रतोदनेन प्रतुद्य 'पुरतः' अग्रतः कुर्वन्ति, न ते स्वेच्छया गन्तुं स्थातुं वालभन्ति इति ॥५॥ किञ्च -
__टीकार्थ - नरकपाल विवेक शून्य नारकीय प्राणियों को प्रजवलित लौहमय पथ के सदृश गर्म तथा कीचड़ की ज्यों अत्यधिक फैले हुए खून और मवाद से चिकनी भूमि पर नारकों को उनकी इच्छा न होते हुए बलपूर्वक चलाते हैं, उस भूमि पर चलते हुए नारकीय प्राणी बुरी तरह आवाजें करते हैं, चिल्लाते हैं । परमाधामी देव अत्यन्त विषम कुम्भी और शाल्मली आदि जिस नरक में जाने हेतु प्रेरित करते हैं, जब वे उस भूमि पर अच्छी तरह नहीं चलते हैं, तब परमाधामी देव उन पर क्रुद्ध होकर नौकर की ज्यों या बैल की ज्यों डंडे व चाबुक मार-मारकर उन्हें आगे चलाते हैं, वे नारकीय न तो अपनी इच्छा से कहीं आगे जा पाते हैं और न कहीं रुक पाते हैं।
ते संपगाढंसि पवजमाणा, सिलाहि हम्मंति निपातिणीहिं । संतावणी नाम चिरद्वितीया, संतप्पती जत्थ असाहुकम्मा ॥६॥ छाया - ते सम्प्रगाढं प्रपद्यमानाः शिलाभिर्हन्यन्ते नियातिनीभिः ।
संतापनी नाम चिरस्थितिका सन्तप्यते यत्रासाधुकर्मा ॥ अनुवाद - अत्यन्त प्रगाढ गहरी पीड़ा से युक्त नरकगत प्राणी सामने से गिरती हुई पत्थर की शिलाओं . से आहत प्रतिहत होते हैं । कुम्भी नामक नरक में गये हुए जीवों की स्थिति बहुत लम्बे समय की होती है। पापिष्ठ जीव चिरकाल तक वहाँ रहते हुए संतप्त होते रहते हैं।
टीका 'ते' नारकाः 'सम्प्रगाढ' मिति बहुवेदनमसह्यं नरकं मार्ग वा प्रपद्यमाना गन्तुं स्थातुं वा तत्राशक्नुवन्तोऽभिमुखपातिनीभिः शिलाभिरसुरैर्हन्यन्ते, तथा सन्तापयतीति सन्तापनी-कुम्भी सा च चिरस्थितिका तगतोऽसुमान् प्रभूतं कालं यावदतिवेदनाग्रस्त आस्ते यत्र च 'सन्तप्यते' पीड्यतेऽत्यर्थम् 'असाधुकर्मा' जन्मान्तरकृताशुभानुष्ठान इति ॥६॥ तथा -
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