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श्री सूत्रकृताङ्गसूत्रम् का विचार नहीं करते, ज्ञानावरणीय आदि दूषित कर्मों का आचरण करते हैं वे पापिष्ठ प्राणी अपने पूर्व जन्मों में अर्जित-संचित दुष्कर्मों का फल जिस प्रकार नरक में भोगते हैं, वह बतलाऊँगा ।।
हत्थेहि पाएहि य बंधिऊणं, उदरं विकत्तंति खुरासिएहिं । गिण्हितु बालस्स विहत्तु देहं, वद्धं थिरं पिट्ठतो उद्धरंति ॥२॥ छाया - हस्तेषु पादेषु च बध्धवा, उदरं विकर्त्तयन्ति क्षुरप्रासिभिः ।
गृहीत्वा बालस्य विहतं देहं बध्र स्थिरं पष्ठत उद्धरन्ति ॥ अनुवाद - परमाधामी देव नारकीय जीवों के हाथ और पैर बांधकर उस्तरे तथा तलवार द्वारा उनके पेट चीर डालते हैं । अज्ञानमय नारकीय प्राणियों के शरीर को लाठी आदि प्रहारों द्वारा बुरी तरह मारते-पीटते हैं । फिर उन्हें पकड़कर पीठ की चमड़ी को उधेड़ डालते हैं।
टीका - परमाधार्मिकास्तथाविधकर्मोदयात् क्रीडायमानाः तान्नारकान् हस्तेषु पादेषु बद्ध्वोदरं 'क्षुर प्रासिभिः'नानाविधैरायुधविशेषैः विकर्तयन्ति'विदारयन्ति, तथा परस्य बालस्येवाकिञ्चित्करत्वाद्वालस्य लकुटादिभिर्विविधं 'हतं' पीडितं देहं गृहीत्वा 'वर्ध' चर्मशकलं 'स्थिरं' बलवत् ‘पृष्ठतः' पृष्ठिदेशे 'उद्धरन्ति' विकर्तयन्त्येवमग्रतः पार्श्वति श्चेति ॥२॥ अपिच -
टीकार्थ - पूर्व गाथा में जो सूचित किया गया है तदनुसार यहाँ वर्णन करते हैं । तथाविध कर्मोदय के कारण औरों को कष्ट देने में क्रीड़ा, एवं मनोविनोद की ज्यों सुख मानने वाले परमाधामी देव उन नारकीय प्राणियों के हाथ पैर बांधकर तेज धार युक्त उस्तरे एवं तलवार आदि अनेक प्रकार के शस्त्रों द्वारा उनके पेट चीर डालते हैं । एक बालक के समान कुछ भी प्रतिकार करने में जो समर्थ नहीं है ऐसे अन्य नारकीय जीवों के शरीर को लाठी आदि द्वारा वे परमाधामी देव तरह-तरह से मारते पीटते हैं फिर उन्हें पकड़कर बलपूर्वक उनकी पीठ की चमड़ी खींच लेते हैं, उधेड़ डालते हैं । इसी प्रकार पार्श्वभाग तथा अग्र भाग की चमड़ी भी उधेड़ डालते हैं।
बाहू पकत्तंति य मूलतो. स, थूलं वियासं मुहे आइहंति । ' रहंसि जुत्तं सरयंति बालं, आरुस्य विझंति तुदेण पिढे ॥३॥ छाया - वाहून् प्रकर्तयन्ति समूलतस्तस्य, स्थूलं विकाशे मुखे आदन्ति ।
रहसि युक्तं स्मरयंति बाल आरूष्य तुदेन पृष्ठे विध्यन्ति ॥ अनुवाद - नरकपाल नारकीय जीवों की भुजाओं को जड़ से उखाड़ डालते हैं तथा उनका मुख फाड़कर उसमें लोहे के तपाये हुए गरम गोले डालकर उन्हें जलाते हैं, पीड़ित करते हैं । उन्हें वे एकान्त में ले जाकर उन द्वारा पूर्वाचरित कर्मों को स्मरण कराते हैं, तथा उन पर निष्कारण क्रोध करते हुए उनकी पीठ पर चाबुक फटकारते हैं, घायल कर डालते हैं ।
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