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श्री सूत्रकृताङ्ग सूत्रम् सुफणिं च साग पागाए, आमल गाइं दगाहरणं च । तिलग करणि मंजण सलागं, प्रिंसु मे विइणयं विजाणेहि ॥१०॥ छाया - सुफणिञ्च शाक पाकाय आमल कात्युद काहरणञ्च ।
तिलक करण्यञ्जन शालाकां ग्रीष्मे विधूनकमपि जानीहि ॥ अनुवाद - साग पकाने के लिए तपेली या देगची लाओ, आंवले, पानी रखने का बर्तन, तिलक-ललाट में बिंदियां लगाने, आंखों में अंजन लगाने के लिए सलाई और गर्मी में हवा करने के लिए पंखी लाकर दो।
टीका - सुष्ठु सुखेन वा फण्यते-क्वाथ्यते तक्रादिकं यत्र तत्सुफणि-स्थालीपिठरादिकं भाजनमभिधीयते च्छाकपाकार्थमानय तथा 'आमलकानि' धात्रीफलानि स्नानार्थं पित्तोपशमनायाभ्यवहारार्थं वा तथोदकमाहियते येन तदुदकाहरणं-कुटवर्धनिकादि, अस्य चोपलक्षणार्थत्वाद् घृततैलद्याहरेण सर्वं वा गृहोपस्करं ढौकयस्वेति, तिलकः क्रियते यया सा तिलककरणी-दन्तमयी सुवर्णात्मिका वा शलाका यया गोरोचनादियुक्तया तिलक: क्रियत इति, यदि वा गोरोचनया तिलकः क्रियते (इति) सैव तिलककरणीत्युच्यते तिलका वा क्रियन्तेपिष्यन्ते वा यत्र सा तिलककरणीत्युच्यते, तथा अञ्जनं-सौवीरकादि शलाका-अक्ष्णोरञ्जनार्थं शलाका तामाहरेति। तथा 'ग्रीष्मे' उष्णाभितापे एति 'मे' मम 'विधनकं' व्यजनकं विजानीहि ॥१०॥ एवं -
टीकार्थ - जिसमें सुविधा के साथ छाछ आदि पदार्थ उबाले जाते हैं उसे सुफणी कहा जाता है । देगची-तपेली आदि पात्र इस कोटि में आते हैं । साग पकाने के लिए ऐसे बरतन लाओ । नहाने में उपयोग हेतु पित्त के उपशमन के लिए आँवले लाओ । पानी रखने के लिए कलश आदि पात्र लाओ। यह उपलक्षण संकेत के रूप में कहा गया है। पानी के पात्र के साथ-साथ घृत तथा तेल ररवने के लिए भी पात्र तथा और भी घर का सामान लाओ। जिससे तिलक किया जाता है उसे तिलक करनी कहा जाता है । वह हाथी दाँत या सोने की सलाई होती है। उससे गोरोचन आदि करके तिलक किया जाता है । गोरोचना को भी तिलक करणी कहा जाता है । जिसमें तिलकोपयोगी पदार्थ पीसे जाते है उसे तिलक करणी कहा जाता है । नेत्र में अंजन लगाने की काजल या सुरमा आंजने की जो सलाई होती है उसे अंजन श्लाका कहते हैं । ये सब वस्तुएँ मुझे लाकर दो । गर्मी के ताप के उपशमन हेतु मुझे पंखी लाकर दो।
संडासगं च फणिहं च, सीहलिपासगं च आणाहि ।
आदंसगं च पयच्छाहि, दंत पक्खालणं पवेसाहि ॥११॥ छाया - संडासिकञ्च फणिहं च, सीहलि पाशकञ्चानय ।
आदर्शकञ्च प्रयच्छ दन्त प्रक्षालनकं प्रवेशय ॥ अनुवाद - नाक के बालों को उखाड़ने के लिए संडासीक-छोटी कैंची या कतिया, बाल सँवारने के लिए कंघी, चोटी बाँधने हेतु ऊन की बनी हुई आँटी, मुँह देखने के लिए शीशा और दाँत साफ करने हेतु दातौन या ब्रुश लाओ।
टीका - 'संगासकं' नासिकाकेशोत्पाटनं 'फणिहं' केशसंयमनार्थं कङ्कतकं, तथा 'सीहलिपासगं' ति वेणीसंयमनार्थमूर्णामयं कङ्कणं च 'आनय' ढौकयेति, एवम् आ-समन्तादृश्यते आत्मा यस्मिन् स एव आदर्शकस्तं
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