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श्री सूत्रकृताङ्ग सूत्रम् टीकार्थ - मेरे कपड़े जीर्ण-पुराने हो गए हैं, इसलिए मुझे दूसरे कपड़े लाकर दो, अथवा वे मलिन हो गए हैं, उन्हें धोने हेतु धोबी को दो, अथवा मेरी उपधि-वस्त्र आदि उपकरणों को चूहे आदि के भय से बचाकर सुरक्षित रखो । मेरे लिए भोजन पानी आदि लाओ । मेरे लिए कोष्टपुट आदि सुगन्धित द्रव्य तथा स्वर्ण तथा सुन्दर रजोहरण लाओ । मैं अपने केशों का लुंचन करने में अशक्त हूँ । इसलिए नाई को बुलाओ, तथा मुझे केश कटवाने की अनुज्ञा दो जिससे मैं अपने बड़े केशों को कटवा लूँ ।
अद् अंजणिं अलंकारं, कुक्कययं मे पयच्छाहि । लोद्धं च लोद्धं कुसुमं च, वेणुपलासियं च गुलियं च ॥७॥. छाया - अथाञ्जनिकामलङ्कार, खंखुणकं में प्रयच्छ ।
__ लोधञ्च लोधकुसुमञ्च वेणुपलाशिकाञ्च गुलिकाञ्च ॥ अनुवाद - जो साधु नारी में आसक्त होता है उसे वह कहती है कि मुझको अंजन, आंखों में डालने के काजल की डिबिया और धुंघरू युक्त वीणा लाकर दो लोध्र का फल और पुष्प एवं बाँस की चिकनी लकड़ी बांसुरी और पुष्टिप्रद गोलियाँ भी लाकर दो ।
टीका - अथ शब्दोऽधिकारान्तरप्रदर्शनार्थः पूर्व लिङ्गस्थोपकरणान्यपिकृत्याभिहितम्, अधुना गृहस्थोपकरणान्यधिकृत्यामिधीयते, तद्यथा-'अंजणिमित्ति अञ्जणिकांकज्जलाधारभूतां नलिकांमम प्रयच्छस्वेत्युत्तरत्र क्रिया, तथा कटककेयूरादिकमलङ्कारं वा, तथा 'कुकययं' ति खुंखुणकं 'मे' मम प्रयच्छ, येनाहं सर्वालङ्कारविभूषिता वीणा विनोदेन भवन्त विनोदयामि, तथा लोधं च लोध्रकुसुमं च, तथा 'वेणुपलासियं' ति वंशात्मिका श्लक्ष्णत्वक् काष्ठिका, सा दन्तर्वामहस्तेन प्रगृह्य दक्षिणहस्तेन वीणावद्वाद्यते, तथौषधगुटिकां तथाभूतामानय येनाहं मविनष्टयौवना भवामीति ॥७॥ तथा कुष्ठम् -
टीकार्थ - इस गाथा में अथ शब्द अधिकार बताने के अर्थ में है । पहले साधु के वेश में रहने वाले पुरुष के उपकरणों-उपयोग की वस्तुओं के सम्बन्ध में कहा है । अब गृहस्थों के काम में आने वाली वस्तुओं के विषय में कहते हैं । स्त्री कहती है कि मुझे काजल रखने हेतु नली-पात्र लाकर दो । यहां पर पयच्छहिप्रयच्छस्व, जो क्रिया पद आया है वह आगे के चरण से सम्बद्ध है वह कहती है मुझे कटक-कलाई में पहनने
इ केयूर-बाजू बंध, आदि गहने लाकर दो । मुझे एक धुंघरूदार वीणा लाकर दो जिससे मैं सभी प्रकार के आभरणों से अलंकृत हो कर वीणा वादन द्वारा आपका मनोविनोद करूं, आपको प्रसन्न करूं । मुझे लोध्र का फल और पुष्प लाकर दो चिकनी छाल के बांस की बंशी लाकर दो जो बायें हाथ से पकड़कर वीणा की तरह बजायी जाती है । मुझे पौष्टिक दवा की ऐसी गोली लाकर दो जिससे मेरा यौवन-जवानी अविनष्ट, कायम रहे।
के कड़े
कुटुं तगरं च अगरूं, संपिटुं सम्म उसिरेणं । तेल्लं मुहभिलिंजाए, वेणुफलाइं सन्निधानाए ॥८॥
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