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स्त्री परिज्ञाध्ययन एवं खु तासु विन्नप्पं, संथवं संवासं च वजेजा । तज्जातिआ इमे कामा, वज्जकरा य एवमक्खाए ॥१९॥ छाया - एवं खलु तासु विज्ञप्तं, संस्तवं संवासंच वर्जयेत् ।
तज्जातिका इमे कामा अवद्यकरा एवमाख्याताः ॥ अनुवाद - स्त्री के सम्बन्ध में पहले जो उनका विवेचन किया गया है उसे ध्यान में रखते हुए साधु स्त्री के साथ संस्तव-परिचय और संवास-सहवास नहीं करे । तजनित-स्त्री के संसर्ग से उत्पन्न होने वाले काम भोग पापोत्पादक हैं, ऐसा सर्वज्ञों ने आख्यात किया है, बतलाया है ।
टीका - 'एतत्' पूर्वोक्तं खुशब्दो वाक्यालङ्कारे तासु यत्स्थितं तासां वा स्त्रीणां सम्बन्धि यद् विज्ञप्तम्उक्तं, तद्यथा-यदि सकेशया मया सह न रमसे ततोऽहं केशानप्यपनयामीत्येवमादिकं, तथा स्त्रीभिः सार्धं 'संस्तवं' परिचयं तत्संवासं च स्त्रीभिः सहैकत्र निवासं चात्महितमनुवर्तमानः सर्वापायभीरू: 'त्यजेत्' जह्यात्, यतस्ताभ्योरमणीभ्यो जाति:-उत्पत्तिर्येषां तेऽमी कामास्तजातिका-रमणीसम्पर्कोत्यास्तथा 'अवा' पापं व्रजं वा गुरुत्वादधः पातकत्वेन वापमेव तत्करणशीला अवधकरा व्रजकरा वेत्येवम् 'आख्याताः' तीर्थकरगणधरादिभिः प्रतिपादिता इति" |॥१९॥ सर्वोपसंहारार्थमाह -
टीकार्थ – इस गाथा में 'खु' शब्द वाक्यालंकार के रूप में आया है । पहले स्त्रियों की रीति किस प्रकार की होती है, यह वर्णित हुआ है । स्त्रियाँ साधु से अभ्यर्थना करती है कि मुझ केशों वाली के साथ यदि तुम रमण नहीं करते, ऐसा तुम्हें नहीं भाता तो मैं इन केशों को उपाड़ डालूं, यह सब कहा जा चुका है । इसलिए जो पुरुष अपनी आत्मा का हित कल्याण चाहता है, तथा सब प्रकार अपाय-विनाश से, पतन से डरता है, वह स्त्रियों के साथ परिचय संस्तव-सम्पर्क न बढ़ाये तथा उनके साथ एक स्थान में निवास न करे, क्यों कि स्त्री के संबंध से जनित काम भोग-काम-वासना अवद्य-पाप उत्पन्न करती हैं, जो भारीपन के कारण अधः पतन करता है, वैसा करने वाले पाप प्रवण होते हैं । तीर्थंकर, गणधर आदि महापुरुषों ने ऐसा आख्यात किया है, प्रतिपादित किया है । अब सबका उपसंहार करते हुए कहते हैं।
एयं भयं ण सेयाय, इह से अप्पगं निलंभित्ता ।
णो इत्थिं णो पसु भिक्खु, णो सयं पाणिणो णिलिज्जेजा ॥२०॥ छाया - एवं भयं न श्रेयसे, इति स आत्मानं निरुध्य ।
___नो स्त्रीं नो पशु भिक्षुः नो स्वयं पाणिना निलीयेत ॥ अनुवाद - स्त्री के संसर्ग से पूर्वोक्त रूप में भयजनक स्थितियां उत्पन्न होती हैं । स्त्री का सम्पर्क आत्म कल्याण का निरोधक या बाधक है । इसलिए साधु स्त्री को या पशु को अपने हाथ से स्पर्श तक न करे।
टीका - ‘एवम्' अनन्तरनीत्या भयहेतुत्वात् स्त्रीभिर्विज्ञप्तं तथा संस्तवस्तत्संवासश्च भयमित्यतः स्त्रीभिः साधू सम्पर्को न श्रेयसे असदनुष्ठानहेतुत्वात्तस्येत्येवं परिज्ञायस भिक्षुरवगतकामभोगविपाक आत्मानं स्त्री सम्पर्कान्निरुध्य सन्मार्गे व्यवस्थाप्य यत्कुर्यात्तदर्शयति-न स्त्रियं नरकवीथीप्रायां नापि पशुं 'लीयेत' आश्रयेत स्त्रीपशुभ्यां सह
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