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स्त्री परिज्ञाध्ययनं । इस प्रकार पुत्र का पालन पोषण तथा इससे उपलक्षित स्त्री के सभी आदेशों का अनुवर्तन करने वाले, महामोहनीय कर्म के उदय में अवस्थित, स्त्री निर्देशवृत्ति-स्त्रियों के आज्ञापालक इस लोक और पर लोक के बिगड़ने की जरा भी परवाह न करने वाले पुरुष ऊँट की ज्यों भार ढोने का काम करते हैं ।
राओवि उठ्ठिया संता, दारगं च संठवंति धाई वा ।।
सुहिरामणा वि ते संता, वत्थधोवा हवंति हंसा वा ॥१७॥ छाया - रात्रावप्युत्थिताः सन्तः दारकं संस्थापयन्ति धात्रीव ।
सुहीमनसोऽपि ते सन्तः, वस्त्रधावका भवन्ति हंसावा ॥ अनुवाद - जो पुरुष स्त्री के वशगत होते हैं वे रात में भी उठकर धाय की ज्यों बच्चे को गोद में ले लेते हैं वे अत्यन्त लज्जाशील होते हुए भी शर्माते हुए भी स्त्री और बच्चे के कपड़े धोते हैं ।
टीका - रात्रावप्युत्थिताः सन्तो रुदन्तं दारकं धात्रीवत् संस्थापयन्त्यनेकप्रकारैरुल्लापनैःसामिओसि णगरस्स य णक्कउरस्स य हत्थकप्पगिरिपट्टण सीह पुरस्स य उण्णयस्स निन्नस्स य कुच्छिपुरस्स य कण्णकुज आया मुहसोरियपुरस्सय" इत्येव मादिभिरसम्बद्धैः क्रीडनकालापैः स्त्रीचित्तानुवर्तिनः पुरुषास्तत् कुर्वन्ति येनो पहास्यतां सर्वस्य व्रजन्ति, सुष्टु ही:-लज्जा तस्यां मनः-अन्त:करणं येषां ते सुह्रींमनसो-लज्जालवोऽपि ते सन्तो विहाय लज्जा स्त्रीवचनात्सर्वजघन्यान्यपि कर्माणि कुर्वते, तान्येव सूत्रावयवेन दर्शयति-'वस्त्रधावका' वस्त्रप्रक्षालका हंसा इव-रजका इव भवन्ति, अस्य चोपलक्षणार्थत्वादन्यदप्युदकवहनादिकं कुर्वन्ति ॥१७॥ किमेतत्केचन कुर्वन्ति येनैवभिधीयते ?, बाढं कुर्वन्तीत्याह -
टीकार्थ - जो पुरुष स्त्री के वश में होते हैं वे रात में भी उठकर रोते हुए बच्चे को धाय की ज्यों तरह-तरह के लाड़ प्यार के शब्दों से सांत्वना देते हुए अपनी गोद में रखते हैं । जैसे वे उसे कहते बेटा तुम नक्रपुर हस्तिपतन, कल्पपत्तन, सिंहपुर, उन्नत स्थान, निम्नस्थान, कुक्षिपुर, कान्यकुब्ज पीतामह मुख तथा शौर्यपुर के स्वामी हो, राजा हो, नारी के अधीन बने हुए पुरुष यों अनेक प्रकार से बालक के लिए विनोद जनक आलाप संलाप द्वारा उसे खिलाता है । इस प्रकार के कार्य करते हैं जिससे वे सभी के लिए उपहासात्मक बनते हैं । जिनका मन अत्यन्त लज्जाशील है, वैसे पुरुष भी लज्जा का परित्याग कर स्त्री के कहने से छोटे से छोटा काम कर लेते हैं । सूत्रकार सूत्र के अवयवों अंगों द्वारा यही दिग्दर्शन कराते हुए कहते हैं ऐसे पुरुष धोबी के ज्यों कपड़े धोते हैं । कपड़े धोना तो यहाँ उपलक्षण है । इससे संकेतिक है कि वे स्त्री के लिए पानी लाना आदि भी कार्य करते हैं । क्या कई पुरुष ऐसा करते हैं जिससे आप यों कहते हैं ? हाँ करते हैं। इसी बात को सूत्रकार बतलाते है।
एवं बहुहिं कय पुव्वं, भोगत्थाए जेऽभियावन्ना ।। दासे मिइव पेसे वा, पसुभूतेव से ण वा केई ॥१८॥ छाया - एवं बहुभिः कृतपूर्व, भोगार्थाय येऽभ्यापन्नाः । दासमृगाविव प्रेष्य इव पशूभूत इव स न वा कश्चित् ॥
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