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उपसर्गाध्ययनं तो बहुत कम कीमत लेकर वह झूरने लगा-फूट-फूटकर रोने लगा, पछताने लगा । आप भी उसी तरह रोयेंगे, पछतायेंगे ।
पाणाइवाते वटुंता, मुसावादे असंजता ।
अदिन्नादाणे वटुंता, मेहुणे य परिग्गहे ॥८॥ छाया - प्राणातिपाते वर्तमानाः मृषावादेऽसंयताः ।
अदत्तादाने वर्तमानाः मैथुने च परिग्रहे ॥ अनुवाद - आप प्राणातिपात जीवधारियों का प्राणोच्छेद-व्यापादन या हिंसा करते हैं । असत्य भाषण करते हैं, अदत्त-बिना दी हुई वस्तु का आदान-ग्रहण करते हैं, जो चोरी है । अब्रह्मचर्य एवं परिग्रह का संचय करते हैं । इस प्रकार वर्णन करते हुए आप संयताचारी नहीं हैं।
टीका - पुनरपि 'सातेन सात' मित्येवंवादिनां शाक्यानां दोषोद्विभावयिषयाह-प्राणातिपातमृषावादादत्तादान मैथुनपरिग्रहेषु वर्तमाना असंयता यूयं वर्तमानसुखैषिणोऽल्पेन वैषयिकसुखाभासेन पारमार्थिकऐकान्तात्यान्तिकं बहु मोक्षसुखं विलुम्पथेति, किमिति ? यतः पचनपाचनादिषु क्रियासुवर्तमानाःसावद्यानुष्ठानारम्भ तया प्राणातिपातमाचरथ तथा येषां जीवानां शरीरोपभोगो भवद्भिः क्रियते तानि शरीराणि तत्स्वामिभिरदत्तानीत्यदत्तादानाचरणं तथा गोमहिष्यजोष्ट्रादिपरिग्रहात्तन्मैथुनानुमोदनादब्रह्मेति तथा प्रव्रजिता वयमित्येवमुत्थाय गृहस्थाचरणानुष्ठान्मृषा वादः तथा धनधान्यद्विपदचतुष्पदादिपरिग्रहात्परिग्रह इति ॥८॥ साम्प्रतमतान्तरंदूषणाय पूर्व पक्षयितुमाह
टीकार्थ - सुख से ही सुख प्राप्त होता है, इस मत में विश्वास रखने वाले बौद्ध भिक्षुओं के सिद्धान्त में दोष उद्विभावित करने हेतु-बताने हेतु सूत्रकार प्रतिपादित करते हैं-आप लोग प्राणातिपात-जीवों की हिंसा, मृषावाद-असत्यभाषण अदत्तादान-चौर्य, मैथुन-अब्रह्मचर्य एवं परिग्रह-धन वैभव में वर्तमान- संलग्न रहने के कारण असंयत-संयमरहित हैं । वर्तमान सुखैषी वर्तमानकालीन सुखाभिलाषा में अभिरत है । तुच्छ वैषयिक सुख के लिए जो वस्तुतः सुख न होकर सुख का आभास मात्र है, पारमार्थिक-परमार्थयुक्त वास्तविक ऐकान्तिक एवं आत्यन्तिक मोक्ष-सुख को विलुप्त कर रहे हैं, मिटा रहे हैं । भोजन पकाना, पकवाना आत्यन्तिक मोक्ष सुख को विलुप्त कर रहे हैं, मिटा रहे हैं । भोजन पकाना, पकवाना आदि क्रियाओं में संलग्न रहकर सावध प्रवृत्ति से जुड़ते हुए आप जीवों की हिंसा करते हैं । जिन जीवों के शरीर का उपभोग करते हैं, आहार आदि के रूप में उपयोग करते हैं, वे शरीर उनके स्वामियों-मालिकों द्वारा आप को अदत्त हैं-नहीं दिये गये हैं, उन्हें काम में लेकर आप अदत्तादान-चौर्य का आचरण करते हैं । आप पर चोरी का अपराध सिद्ध होता है । गाय, भैंस, बकरी, ऊँट आदि रखकर उन द्वारा सेवित अब्रह्मचर्य का अनुमोदन करते हैं । हम प्रव्रजित दीक्षित हैं, यों कहते हुए आप संयम में समुत्थित हैं-उद्यत हैं, पर गृहस्थों के आचरणों का अनुष्ठान करते हैं । गृहस्थों की ज्यों आचरणशील है । यह आप द्वारा मृषावाद-असत्य भाषण का परिसेवन है । धन, धान्य द्विपद-दो पैरों वाले प्राणी, दास, दासी आदि, चतुष्पद-चौपाये पशु आदि के रूप में परिग्रह रखते हैं, इसलिए परिग्रह सेवी हैं । अब अन्य मत को सदोष बताने हेतु सूत्रकार पूर्वपक्ष के रूप में उपस्थित करते हैं -
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