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उपसर्गाध्ययन अनुवाद - वे कहते हैं कि जैसे गंड या पिलाग-फोड़े या फुन्सी.को परिपीडित कर-दबाकर उसका मवाद निकाल देने से कुछ देर के लिए सुख मिलता है, इसी तरह सम्पर्क की अभ्यर्थता करने वाली स्त्रियों के साथ समागम करने से खेद की शांति होती है, इस कार्य में दोष किस प्रकार हो सकता है ।
___टीका - यदूचुस्तदाह-यथेत्युदाहरणोपन्यासार्थः, 'यथा' येन प्रकारेण कश्चित् गण्डी पुरुषो गण्डं समुत्थितं पिटकं वा तज्जातीयकमेव तदाकूतोपशमनार्थं 'परिपीड्य' पूयरूधिरादिकं निर्माल्य मुहुर्तमानं सुखितो भवति, न च दोषेणानुषज्यते, एवमत्रापि 'स्त्रीविज्ञापनायां' युवतिप्रार्थनायां रमणीसम्बन्धे गण्डपरिपीडन कल्पे दोषस्तत्र कुतः स्यात ?, न ह्येतावता क्लेदापगममात्रेण दोषो भवेदिति ॥१०॥
___टीकार्थ - पूर्ववर्ती गाथा में जिनका संकेत किया गया है उन इतरमतवादियों ने जो प्रतिपादित किया है, इस गाथा द्वारा उसे बतलाया जाता है -
____ यहां आया हुआ 'जहा-यथा' शब्द उदाहरण बतलाने हेतु है । जैसे वह पुरुष जिसके शरीर में कोई फोड़ा फुसी या कोई व्रण-घाव है, वह उसे दबाकर उसका मवाद तथा विकृत रक्त निकाल कर मुहुर्तभर के लिए सुखित होता है, सुख का अनुभव करता है, फोड़े को दबाने में किसीप्रकार का दोष नहीं होता, उसी तरह एक नवयुवती द्वारा अभ्यर्थना किए जाने पर उसके साथ फोड़े को दबाने की ज्यों, समागम करने से दोष कैसे हो सकता है । स्त्री के समागम द्वारा अपने क्लेश-खेद या खिन्नता को मिटाने मात्र से कोई दोष नहीं लगता।
जहा मंधादए नाम, थिमिअं भंजती दगं । एवं विन्नवणित्थीसु, दोसो तत्थ कओ सिया ? ॥११॥ छाया - यथा मन्धादनो नाम स्तिमितं भुङ्क्ते दकम् ।
एवं विज्ञापनीस्त्रीषु, दोषस्तत्र कुतः स्यात् ॥ अनुवाद - वे अन्य तीर्थी ऐसा कहते हैं कि जैसे मंधादन-भेड़ स्तिमित-बिना हिलाये कम्पाए पानी पीती है, जिससे किसी जीव का उपघात नहीं होता इसी तरह अभ्यर्थना करने वाली स्त्रियों के साथ समागम करने से किसी को कोई दु:ख न होने कारण दोष नहीं लगता।
___टीका - स्यात्तत्र दोषो यदि काचित्पीड़ा भवेत्, न चासाविहास्तीति दृष्टन्तेन दर्शयति-'यथे' त्ययमुदाहरणोपन्यासार्थः, 'मन्धादन' इति मेष: नाम शब्दः सम्भावनायां यथा मेष: तिमितम् अनालोडयन्नुदकं पिबत्यात्मानं प्रीणयति, न च तथाऽन्येषां किञ्चनोपघातं विधत्ते, एवमत्रापि स्त्रीसम्बन्धे न काचिदन्यस्त्र पीड़ा आत्मनश्च प्रीणनम्, अतः कुतस्तत्र दोषः स्यादिति ॥११॥
टीकार्थ - वे अन्य मतवादी ऐसा कहते हैं कि समागम की अभ्यर्थना करने वाली नारी के साथ समागम करने से यदि किसी को कोई तकलीफ होती तो अवश्य ही उसमें दोष होता, परन्तु ऐसा न होने से इसमें कोई दोष नहीं है, इस बात को दृष्टान्त द्वारा समझाते हैं-यहां यथा शब्द का प्रयोग दृष्टान्त को सूचित करने के लिए है । 'मन्धादन' भेड़ का नाम है । नाम शब्द यहाँ सम्भावना को सूचित करने के अर्थ में है। कहने का अभिप्राय यह है कि जैसे भेड़ आलोड़न के बिना-हिलाये बिना जल पीती है, तृप्त होती है, वह अन्य किन्हीं जीवों को कुछ भी पीड़ा नहीं देती, इसी प्रकार स्त्री संबंध में किसी को पीड़ा नहीं होती, अपने को परितृप्ति मिलती है, इसलिए इसमें दोष कैसे हो सकता है ।
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