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श्री सूत्रकृताङ्ग सूत्रम्
"समुद्रवीचीव चलस्वभावाः, मन्याभ्ररेखेवमुहूर्त रागाः ।
स्त्रियः कृतार्थाः पुरुषं निरर्थकं, निष्पीडितालक्तकवत्यजन्ति ॥२॥ "
अत्र च स्त्री स्वभावपरिज्ञाने कथानकमिदम् तद्यथा - एको युवा स्वगृहान्निर्गत्यवैशिकं कामशास्त्रामध्येतु पाटलिपुत्रं प्रस्थितः, तदन्तराले अन्यतरग्रामवर्तिन्यैकया योषिताऽभिहितः, तद्यथा-सुकुमारपाणिपाद : शोभनाकृतिस्त्वं क्व प्रस्थितोऽसि ?, तेनापि यथास्थितमेव तस्याः कथितं तया चोक्तम् - वैशिकं पठित्वा मममध्येनागन्तव्यं, तेनापि तथैवाभ्युपगतम्, अधीत्य चासौ मध्येनायात:, तथा च स्नान भोजनादिना सम्यगुपचरितो विविधहावभावैश्वापहृतहृदयः संस्तां हस्तेन गृह्णाति, ततस्तया महताशब्देन फूत्कृत्य जनागमनावसरे मस्तके वारिवर्धनिका प्रक्षिप्ता, ततो लोकस्य समाकुले एवमाचष्टे - यथाऽयं गले लग्नेनोदकेन मनाक् न मृतः, ततो मयोदकेन सिक्त इति । गते च लोके सा पृष्टवती - किं त्वया वैशिकशास्त्रोपदेशेन स्त्रीस्वभावानां परिज्ञातमिति ? एवं स्त्रीचरित्रं दुर्विज्ञेयमिति नात्रास्था कर्तत्येति, तथा चोक्तम्
“ हृघन्यद्वाच्यन्यत्कर्मण्यन्यत्पुरोऽथ पृष्ठेऽन्यत् । अन्यत्तव मम चान्यत् स्त्रीणां सर्वं किमप्यन्वत् ॥१॥" ॥२०॥ साम्प्रतमिहलोक एव स्त्रीसम्बन्धविपाकं दर्शयितुमाह
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जाते हैं । स्त्रियाँ सपने में भी जो करते हैं । वे स्त्रियों के स्वरूप को और कभी रोती हैं। पुरुष को अपने
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टीकार्थ स्त्री का पोषण करने के लिए जो कार्य किये जाते हैं वे स्त्री पोष या पोषक कहे जाते हैं। वैसे कार्यों में जो प्रवृत्त हो चुके हैं वे उनके दोषों को जान गये हैं, जो स्त्री वेग-स्त्री जाति की प्रवृति को जानते हैं अर्थात् स्त्री स्वभाव से ही माया प्रधान होती है । इसकी प्रवृति छलयुक्त होती है, ऐसा जानने मेँ कुशल हैं, जो औत्पादिक-प्रति उत्पन्नमति आदि से युक्त है, ऐसे भी कतिपय पुरुष अत्यधिक महा मोह से अन्ध बनकर संसार में आवागमन के मार्ग स्वरूप स्त्रियों के वश बोलती है, सत् असत् जो भी कार्य करने हेतु उनसे कहती हैं वे उसे नहीं जानते। स्त्रियाँ कार्य हेतु अपना काम कराने के लिए कभी हंसती हैं प्रति विश्वास दिलाती हैं किन्तु खुद कभी उस पर भरोसा नहीं करती। इसलिए उच्च कुल एवं उत्तम आचारयुक्त पुरुष सुनसान हाट की ज्यों स्त्रियों का परिवर्जन करे। कहा है समुद्र की विचियाँ - लहरें जिस तरह चंचलअस्थिर होती हैं उसी तरह स्त्रियों का स्वभाव चंचल होता है। जैसे सन्ध्या के समय आकाश गत बादल में राग-लालिमा रहती है उसी तरह औरतों का भी राग-अनुरक्ति या प्रेम कुछ ही देर रहता है । औरतें जब पुरुष से अपना मतलब पूरा करा लेती हैं जैसे महावर का रंग निकालकर रूई को फेंक दिया जाता है उसी तरह वे पुरुष को छोड़ देती हैं। स्त्री के स्वभाव को यहाँ एक कथानक द्वारा प्रस्तुत किया जाता है। एक नौजवान से वैश्विक कामशास्त्र अर्थात् नारी के स्वभाव को प्रकट करने वाले शास्त्र के अध्ययन के लिए अपने घर निकला और पाटलिपुत्र की ओर जाने लगा यात्रा मार्ग के बीच आये किसी गांव में वहाँ की औरत ने उनसे कहा तुम्हारे हाथ पैर सुकोमल है, तुम्हारी आकृति भी खुबसूरत है, तुम कहाँ जा रहे हो, उस नौजवान ने जो बात थी उसे बता दी । उस औरत ने उसे कहा कि कामशास्त्र का अध्ययन पूरा कर इसी रास्ते से आना । कामशास्त्र का अध्ययन कर वह नौजवान उसी रास्ते में आया । औरत से मिला । औरत ने उसका स्नान, खानपान द्वारा भलीभाँति आतिथ्य किया, सेवा की। अपने हाव भाव - नाज नखरों और कटाक्षों-तिरछी निगाहों से उसका मन आकृष्ट कर लिया। वह पुरुष उस औरत पर आसक्त हो गया । उस युवक ने जब औरत का हाथ पकड़ना चाहा तब वह जोर से चिल्लायी । जब लोग आने लगे तब उसने उस युवक पर जल से भरा घड़ा
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