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स्वसमय वक्तव्यताधिकारः
एवमे
वियक्काहिं, नो अन्नं पज्जुवासिया ।
अप्पणो य वियक्काहिं, अयमंजूहिं दुम्मई ॥२१॥
छाया एवमेके वितर्काभि र्नाऽन्यं पर्युपासते । आत्मनश्च वितर्काभिरयमृजुर्हि दुर्मतयः ॥
अनुवाद वेप्राणी जिनकी बुद्धि दूषित है, सत् तत्त्व को ग्रहण करने का जिनमें गुण नहीं है, जो पहले कहे गये विकल्पों के कारण ज्ञानवादी की पर्युपासना नहीं करते, उसके सान्निध्य से लाभान्वित नहीं होते, वे उन विकल्पों के कारण अज्ञान को ही मोक्ष प्राप्ति का सरल मार्ग स्वीकार करते हैं ।
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टीका - पुनरपि तदूषणाभिधित्सयाऽऽह - एवमनन्तरोक्तया नीत्या एके केचनाज्ञानिकाः वितर्काभिः मीमांसाभिः स्वोत्प्रेक्षिताभिरसत्कल्पनाभिः परमन्यमार्हतादिकं ज्ञानवादिनं न पर्य्युपासते न सेवन्ते स्वावलेपग्रहग्रस्ताः वयमेव तत्त्वज्ञानाभिज्ञाः नापर: कश्चिदित्येवं नाऽन्यं पर्युपासत इति । तथाऽत्मीयैर्वितकैरेवमभ्युपगतवन्तो- यथा अयमेव अस्मदीयोऽज्ञानमेव श्रेय इत्येवमात्मको मार्गः अरिति निर्दोषत्वाद्व्यक्तः - स्पष्टः परैस्तिरस्कर्तुमशक्यः ऋजुर्वा - प्रगुणोऽकुटिलः यथावस्थितार्थभिधायित्वात् किमिति (ते) एवमभिदधति ? हि यस्मादर्थे यस्मात्ते दुर्मतयो विपर्य्यस्तबुद्धय इत्यर्थः ॥ २१ ॥
टीकार्थ
शास्त्रकार पुनः अज्ञानवादियों का मत दोष युक्त है, यह बताने हेतु प्रतिपादित करते हैंपहले जो नीति-पद्धति या मार्ग बतलाया गया है, उस द्वारा अज्ञानी - अज्ञानवादी अपने ओर से की गई वितर्कणा-मीमांसा आदि के आधार पर निष्पन्न असत्कल्पनाओं के कारण अन्य किसी ज्ञानवादी - अर्हतों की, वैसे महापुरुषों की सेवा नहीं करते । उनका सानिध्य लाभ नहीं करते। वे अहंकार रूपी ग्रह से मगरमच्छ से ग्रसित हैं । हम ही तत्त्व ज्ञान के अभिज्ञ- विशिष्ट ज्ञाता हैं, अन्य कोई नहीं हैं, ऐसा समझकर अन्य क्रिया की पर्युपासना नहीं करते - सानिध्य लाभ नहीं करते । वे अपने द्वारा की गई कल्पना अथवा वितर्क के कारण ऐसा स्वीकार करते हैं कि हमारा अज्ञानमय मार्ग ही श्रेयस् का मार्ग है, दोष रहित है, अन्य सैद्धान्तिकों द्वारा उसका खण्डन नहीं किया जा सकता । यह ऋजु व्यक्त प्रगुण- उत्तम गुण युक्त तथा अकुटिल - कुटिलता रहित सरल मार्ग है क्योंकि जो पदार्थ जिस रूप में अवस्थित है, उनको वह उसी प्रकार व्याख्यात करना है । फिर एक प्रश्न के साथ उपसंहार करते हैं कि वे अज्ञानवादी ऐसा क्यों कहते हैं ? इसका उत्तर यह है कि वे दुर्मति हैं, उनकी बुद्धि दूषित हैं- विपरीत है- सत्य तथ्य को गृहीत नहीं करती ।
छाया
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एवं तक्काइ साहिंता धम्माधम्मे अकोविया । दुःखं ते नाइतुट्टंति सउणी पंजरं जहा ॥२२॥
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एवं तर्कैः साधयन्तः धर्माधर्मयोरकोविदाः । दुःखन्ते नातित्रोटयन्ति शकुनिः पञ्जरं यथा ॥
अनुवाद - वे अज्ञानवादी जिनका पहले वर्णन किया गया है, वस्तुतः धर्म तथा अधर्म का स्वरूप नहीं जानते किन्तु वे तर्क, न्याय, युक्ति द्वारा अपने सिद्धान्तों को सत्य साबित करने का उपक्रम करते हैं ।
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