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उपसर्गाध्ययनं अभुंजिया नमी विदेही, रामगुत्ते य भुंजिआ । बाहुए उदगं भोच्चा, तहा नारायणे रिसी ॥२॥ छाया - अभुक्त्वा नमिवैदेही रामगुप्तश्चभुक्त्वा ।
वाहुक उदकं भुक्त्वा तथा तारागण ऋषिः ॥ अनुवाद - कोई अज्ञजन साधु को साधना पथ से विचलित करने के लिए कहता है विदेह देश के अधिपति नमीराजा ने भोजन न करते हुए सिद्धत्व प्राप्त किया । रामगुप्त आहार का सेवन करते हुए मुक्त हुआ तथा बाहुक ने शीतल-सचित्त जल का सेवन करते हुए मुक्ति प्राप्त की एवं तारागण ऋषि ने भी उदक का सेवन करते हुए मोक्ष पाया ।
टीका - केचन कुतीर्थिकाः साधुप्रतारणार्थमेवमूचुः, यदिवा स्ववर्याः शीतलविहारिण एतद् वक्ष्यमाणमुक्तवन्तः, तद्यथा-नमीराजा विदेहो नाम जनपदस्तत्र भवा वैदेहा:-तन्निवासिनो लोकास्तेऽस्य सन्तीति वैदेही, स एवम्भूतो नमी राजा अशनादिकमभुक्त्वा सिद्धिमुपगतः तथा रामगुप्तश्च राजर्षिराहादिकं 'भुक्त्वैव' भुञ्जान एवसिद्धि प्राप्त इति तथा बाहकःशीतोदकादिपरिभोगं कृत्वा तथा नारायणो नाम महर्षिः परिणतोदकादिपरिभोगात्सिद्ध इति ॥२॥ अपिच -
टीकार्थ - कई मिथ्या दर्शन में आस्थाशील पुरुष साधु को प्रतारित करने हेतु धोखा देने के लिए यों कहते हैं, अथवा स्ववर्दी-अपने ही वर्ग या परम्परानुगत शिथिलाचारी वक्ष्यमाण रूप में कहते हैं विदेह नाम का एक विशेष देश-जनपद है । उसमें जो लोग निवास करते हैं उन्हें 'वैदेह' कहा जाता है । वे लोग जिसके अधीन या वशगत है वह वैदेही कहा जाता है, अर्थात् विदेह देश में रहने वाले लोगों के राजा नमी ने अशन आदि आहारों का परित्याग कर सिद्धि प्राप्त की । राजर्षि रामगुप्त ने आहार करते हुए सिद्धत्व पाया। बाहुक ने शीतल जल-सचित्त पानी आदि का परिभोग करते हुए मुक्ति प्राप्त की । नारायण नामक महर्षि ने परिणत उदक, अचित पके जल आदि का सेवन करते हुए मोक्ष की उपलब्धि की ।
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आसिले देविले. चेव, दीवायण महारिसी । पारासरे दंग भोज्जा, बीयाणि हरियाणि य ॥३॥ छाया - आसिलो देवलश्चैव, द्वैपायनो महाऋषिः ।
पराशर उदकं भुक्त्वा बीजानि हरितानि च । अनुवाद - आसिल, देविल, द्वैपायन एवं पाराशर नामक बड़े-बड़े ऋषियों ने सचित्त जल, बीज एवं हरी वनस्पतियों का सेवन करते हुए सिद्धत्व प्राप्त किया ।
टीका - आसिलो नाम महर्षिस्तथा देविलो द्वैपायनश्च तथा पराशराख्य इत्येव मादयः शीतोदकबीजहरितादिपरिभोगादेव सिद्धा इति श्रूयते ॥३॥
टीकार्थ - आसिल नामक महर्षि तथा देवल, द्वैपायन एवं पाराशर संज्ञक ऋषि गण ने सचित्त जल बीज एवं हरी वनस्पतियों का उपभोग करते हुए सिद्धि प्राप्त की । ऐसा सुना जाता है।
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