________________
श्री सूत्रकृताङ्ग सूत्रम् वर्तत इति । अपि च अहिंसया समता अहिंसासमता ताञ्चैतावद्विजानीयात्, यथा मम मरणं दुःख ञ्चाप्रियमेवमन्यस्यापि प्राणि लोक स्येति । एवकारोऽवधारणे, इत्येवं साधुना ज्ञानवता प्राणिनां परितापनाऽपद्रावणादि न विधेय मेवेति ॥१०॥
टीकार्थ - प्राणियों की हिंसा क्यों नहीं करनी चाहिये, इसका समाधान प्रस्तुत करते हुए आगमकार कहते हैं -
इस गाथा में "खु" शब्द आया है । वह अवधारणा के अर्थ में है । ज्ञानी-विशिष्ट विवेकसम्पन्न पुरुष के लिए यहीं सार युक्त बात हैं-उचित है, करणीय है कि वह स्थिति शील, गतिशील किन्हीं भी प्राणियों की हिंसा न करे । उन्हें यातना या पीडा न दे। यहां हिंसा न करना उपलक्षण है-संकेत रूप है । इससे यह भी समझना चाहिये कि विवेकशील पुरुष असत्य भाषण न करे, अदत्त वस्तु न ले, अब्रह्मचर्य न सेवे, परिग्रह का संग्रह न करे, तथा रात्रि भोजन भी न करे । ज्ञान प्राप्त करने का यही सार है-उपयोगिता है कि मनुष्य कर्माश्रवों में न पड़े । अहिंसा के कारण जो समत्व भाव पैदा होता है, उसे यथावत समझे । जैसे मुझे मरना अप्रिय लगता है-दुःखजनक लगता है, उसी प्रकार सभी प्राणियों को वह अप्रिय है। यह जानकर विवेकशील मुनि प्राणियों को परितापन-पीड़ा, अपद्रावण-कष्ट न दे। उन्हें पीडित और परितप्त न करे ।
वुसिए य विगयगेही, आयाणं सं (सम्म) रक्खए ।
चरिआसण सेज्जासु भत्तपाणे अ अंत सो ॥११॥ छाया - व्युषितश्च विगतगृद्धि रादानं सम्यग्रक्षेत ।
चर्यासन शय्यासु भक्तपाने चान्तशः ॥ अनुवाद - साधु समाचारी में अवस्थित-साधु आचार का सम्यक् परिपालयिता मुनि आहार आदि में लिप्सा रहित रहे । वह ज्ञान, दर्शन तथा चारित्र की भली भांति रक्षा करे । उन्हें अक्षुण्ण रखे । चलने-फिरने तथा खाने-पीने के संबंध में सदा उपयोग के साथ बरते । ____टीका - विविधम्-अनेक प्रकार मुषितः स्थितो दशविधचक्रवालसमाचार्यां व्युषितः, तथा विगता अपगता आहारादौ गृद्धिर्यस्याऽसौ विगतगृद्धिः साधुः एवंभूतश्चादीयते स्वीक्रियते प्राप्यते वा मोक्षो येन तदादानीयंज्ञानदर्शनचारित्रत्रयं तत्सम्यग् रक्षयेद् अनुपालयेत् यथा यथा च तस्य वृद्धिर्भवति तथा तथा कुर्य्यादित्यर्थः । कथं पुनश्चारित्रादि पालितं भवतीति दर्शयति-च-सनशय्यासु, चरणं च--गमनं साधुना हि सति प्रयोजने युगमात्रदृष्टिना गन्तव्यं, तथा सुप्रत्युपेक्षिते सुप्रमार्जिते चासने उपवेष्टव्यं तथा शय्यायां बसतौ संस्तारके वा सुप्रत्युपेक्षितप्रमार्जिते स्थानादि विधेयं, तथा भक्तपासआन्तशः सम्यगुपयोगवता भाव्यम् इदमुक्तं भवति ईर्याभाषैषणाऽऽदाननिक्षेपप्रतिष्ठापनासमितिषूपयुक्तेनान्तशो भक्तपानं यावदुद्गमादिदोष रहित मन्वेषणीय मिति ॥११॥
टीकार्थ - साधु समाचारी दस प्रकार की बतलाई गई है । उसे तलवार के समान तीक्ष्ण कहा गया है । उसमेंअवस्थित-उसका पालन करने वाला व्युषित कहलाता है । जिसकी आहार आदि में गृद्धि या लोलुपता मिट जाती है वह विगत गृद्धि-लोलुपता रहित या लिप्साहीन कहा जाता है । जो मुनि इन दोनों गुणों से, जिनसे मोक्ष प्राप्त होता है, युक्त है वह ज्ञान, दर्शन और चारित्र की भली भांति रक्षा करे, अनुपालन करे । जैसे जैसे
(126)