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उपसर्गाध्ययनं काम का वेग उमड़ता है, तब संयम के अनुसरण में शीतल-शिथिल हो जाते हैं, अथवा वे संयम से सर्वथा भ्रष्ट-पतित हो जाते हैं, जैसे जाल में फंसी हुई मछली उसमें से बाहर निकलने का रास्ता न पाकर उसी में मर जाती है । उसी तरह वे अभागे सर्वविजयी-सबको जीतने वाले काम से पराजित-पराभूत होकर, हारकर संयम मय जीवन से पतित हो जाते हैं ।
आयदंड समायारे, मिच्छासंठिये भावणा । हरिसप्प ओ समावना, केई लूसंतिऽनारिया ॥१४॥ छाया - आत्मदंड समाचाराः मिथ्यासंस्थित भावनाः ।
हर्ष प्रद्वेष मापन्नाः केऽपिलूषयंत्यनार्याः ॥ - अनुवाद - जिससे आत्मा दंडभागी-पापत्मक कर्मों का बंध करने वाली होती है, ऐसे विपरीत आचरण के अनुगामी, धर्म से विपरीत चित्तवृत्ति युक्त, राग द्वेष से विकृत कई अनार्य पुरुष साधु को पीडित करते हैं।
टीका - किञ्च-आत्मा दण्ड्यते-खण्ड्यते हितात् भ्रश्यते येन स आत्मदण्डः 'समाचारः' अनुष्ठानं येषामनार्याणां ते तथा, तथा मिथ्या-विपरीता संस्थितास्वाग्रहारूढ़ा भावना-अन्त:करणवृत्तिर्येषां ते मिथ्यासंस्तित भावनामिथ्यात्वोपहतदृष्टय इत्यर्थः हर्षश्व प्रद्वेषश्च हर्षप्रद्वेषं तदापन्ना रागद्वेषसमाकुला इति यावत्, त एवम्भृता अनार्याः-सदाचारं साधुं क्रीडया प्रद्वेषेण वा क्रूरकर्मकारित्वात् 'लूषयन्ति' कदर्थयन्ति दण्डादिभिर्वाग्भि-वेति ॥१४॥ एतदेव दर्शयतुमाह -
टीकार्थ - जिससे आत्मा दंड की भागी बनती है, या अपने कल्याण से भ्रष्ट होती है, दूर हटती है, वैसे आचार को आत्म दंड कहा जाता है । जो अनार्य पुरुष ऐसा करते हैं, वे आत्म दण्ड समाचार कहे जाते हैं, जिनकी चित्त की वृत्ति विपरीत है या अपने असत् मिथ्या आग्रह में ग्रस्त है वे मिथ्या दृष्टि पुरुष मिथ्या संस्थित भावना कहलाते हैं, जो हर्ष-प्रसन्नता तथा द्वेष-दुष्टता से युक्त है, दूसरे शब्दों में जो रागद्वेषसमाकुलराग और द्वेष से भरे हुए हैं ऐसे अनार्य पुरुष अपने चैतसिक विनोद के लिए अथवा द्वेष वश क्रूर कर्मा होने के कारण लट्ठी आदि के प्रहार-आघात द्वारा अथवा गाली गलौच द्वारा सदाचरण शील साधु को कष्ट देते हैं।
अप्पेगे पलियंतेसिं, चारो चोरोत्ति सुव्वयं । .. बंधंति भिक्खुयं बाला, कसायवयणेहि य ॥१५॥ छाया - अप्येके पर्यंते चोरश्चौर इति सुव्रतम् ।
बनन्ति भिक्षुकं बालाः कषाय वचनैश्च ॥ अनुवाद - बाल-कतिपय ज्ञान शून्य पुरुष अनार्य देश के आसपास विहरणशील उत्तम व्रत युक्त साधु को यह गुप्तचर है या चोर है, रस्सी आदि द्वारा बाँध देते हैं, कषाय पूर्ण-क्रोध पूर्ण कठोर वचन कहकर उसे दुःखित करते हैं।
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