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छाया
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अनुवाद करुणा समुत्थित-अपने में उठते हुए करुणा पूर्ण भावों के साथ पारिवारिक वृन्द उत्तम शिक्षा देते हैं-आग्रह करते हैं । तब स्वजन वर्ग की आसक्ति में बद्ध मोह मूढ़ वह साधु संयम मय जीवन को तिलांजली देकर घर में चला जाता है ।
उपसर्गाध्ययनं
इत्येव सुशिक्षयन्ति कारुण्य समुपस्थिताः । विबद्धो जाति सङ्गैस्ततोऽगारं प्रधावति ॥
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टीका - णमिति वाक्यालङ्कारे' इत्येव ' पूर्वोक्तया नीत्या माता पित्रादयः कारुणिकैर्वचोभिः करुणामुत्पादयन्तः स्वयं वा दैन्यमुपस्थिताः ‘तं' प्रव्रजितं प्रव्रजन्तं वा सुसे हंति त्ति सुष्ठु शिक्षयन्ति व्युद्ग्राहयन्ति, स चापरिणत धर्माऽल्पसत्त्वो गुरुकर्मा ज्ञाति सङ्गौर्विबद्धो - मातापितृपुत्रकलकत्रादि मोहितः तत: ' अगारं' गृह प्रति धावति - प्रव्रज्यां परित्यज्य गृहपाशमनुबध्नानीति ॥ ९ ॥
टीकार्थ – यहाँ णं शब्द वाक्यालङ्कार के रूप में प्रयुक्त है, जैसा पहले वर्णित हुआ, उस प्रकार माँ, बाप आदि रिश्तेदार कारुणिक करुणार्द्र वचनों द्वारा साधु के मन में करुणा उत्पन्न करते हुए अथवा स्वयं दैन्यभाव युक्त होते हुए उसे शिक्षा देते हैं, उससे आग्रह करते हैं, उसके हृदय में अपनी बात जमाते हैं । अपरिणत धर्मा - अपरिपक्व धर्मयुक्त कच्चा, वह साधु, अल्पसत्व- अत्यधिक आत्मबलहीन एवं गुरुकर्मा, कर्मों से भारी होने के कारण अपने माता-पिता पुत्र इत्यादि के मोह में युक्त पारिवारिक जनों की आसक्ति में बद्ध होकर घर की ओर दौड़ जाता है, प्रव्रजित जीवन का त्याग कर गृहपाश में गृहस्थी के फंदे में बंध जाता है ।
जहा रुक्खं वणे जायं, पडबंधई । एव णं पडिबंधंति, णातओ असमाहिणा ॥१०॥
मालुया
छाया
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यथा वृक्षं वने जातं मालुका प्रतिबध्नाति ।
एवं प्रतिबध्नंति ज्ञातयोऽसमाधिना ॥
अनुवाद जैसे वन में उत्पन्न वृक्ष को मालुका - बेल प्रतिबद्ध कर लेती है, बाँध लेती है, उसके चारों ओर लिपट जाती है, उसी प्रकार पारिवारिक जन असमाधि-अस्थिरता अशांति उत्पन्न कर उसे बांध लेते हैं। अपनी ओर आकृष्ट कर लेते हैं ।
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टीका - किञ्चान्यत् यथा वृक्षं 'वने' अटव्यां 'जातम्' उत्पन्नं 'मालुया' वल्ली 'प्रतिबध्राति' वेष्टयत्येवं 'णं' इति वाक्यालङ्कारे 'ज्ञातयः' स्वजनाः 'तं' यतिं असमाधिना प्रतिबध्नन्ति ते तत्कुर्वन्ते येनास्या समाधिरूत्पद्यत इति, तथा चोक्तम्
"अमित्रो मित्तवेसेणं, कंठे घेत्तूणं रोयइ । मा पित्ता ! सोग्गइ जाहि, दोवि गच्छामु दुग्गई ॥१॥ अपि च
छाया अमित्रं मित्र वेषेण कण्ठे गृहित्वा रोदिति, मा मित्र सुगतीर्याद्वावपिगच्छावोदुगर्तिम्ट
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टीकार्थ इस गाथा में ण शब्द वाक्यालङ्कार में आया है। जैसे वन में उत्पन्न वृक्ष को वल्लीलता प्रतिबद्ध कर लेती है, वेष्ठित कर लेती है, उसे घेर लेती है उसी प्रकार पारिवारिक जन साधु में मानसिक अस्थिरता अशांति उत्पन्न कर उसे प्रतिबद्ध कर लेते हैं। वे ऐसा करते हैं जिससे उस साधु का मन अशांत
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