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वैतालिय अध्ययन नाशक हैं । वे नरक आदि पापी जनों के स्थानों-लोकों में जाते हैं । वे वहां दीर्घकाल तक निवास करते हैं। यदि वे बालतपश्चरण-अज्ञानपूर्ण तपस्या आदि के प्रभाव से देवत्व भी प्राप्त करते हैं तो वे असुर विषयक दिशा को ही जाते हैं अर्थात् वे अन्य देवों के प्रेष्य-नौकरों के रूप में निम्न कोटि के किल्विषिक देव होते हैं ।
ण य संखय माहु जीवितं तहवि य बालजणो पगब्भई । पच्चुप्पन्नेन कारियं, को दर्दू परलोय मागते ॥१०॥ छाया - न च संस्कार्य माहु जीवितं तथापि च बालजनः प्रगल्भते ।
प्रत्युत्पन्ने कार्य को दृष्ट्वा परलोक मागतः ॥ ___ अनुवाद - ज्ञानियों-सर्वज्ञ पुरुषों ने बताया है कि यह जीवन संस्कार करने योग्य-साधने योग्य नहीं है, फिर भी बालजन-अज्ञानी लोग पाप कार्य करने में प्रगल्भ बने रहते हैं-बड़ी धृष्टता करते हैं। वे ऐसा कहते हैं कि हमको तो वर्तमान के सुखों से ही प्रयोजन है, परलोक को देखकर यहाँ कौन आया है-किसने परलोक को देखा है।
टीका - किञ्च न चे नैव त्रुटितं जीवितमायुः संस्कर्ते संधातुं शक्यते एवमाहुः सर्वज्ञाः तथाहि'दण्डकलियं' करिन्ता वच्चंति हु राइओ य दिवसा य । आउं संवेल्लंता गता य ण पुणो निवत्तंति"॥१॥
तथापि एवमपि व्यवस्थिते जीवानामायुषि बालजनो अज्ञो लोको निर्विवेकतया असदनुष्ठाने प्रवृत्ति कुर्वन् प्रगल्भते धृष्ठतां याति असदनुष्ठानेनाऽपि न लज्जत इत्यर्थः सचाज्ञो जनः पापानि कर्माणि कुर्वन् परेण चोदितो धृष्टतया अलीकपाण्डित्याभिमानेनेदमुत्तरमाह-प्रत्युत्पन्नेन वर्तमान कालभाविना परमार्थसता अतीतानागतयोविनष्टानुत्पन्नत्वेनाविद्यमानत्वात् कार्य प्रयोजनं प्रेक्षापूर्वकारिभिस्तदेव प्रयोजनसाधकत्वादादीयते, एवञ्च सतीहलोक एव विद्यते न परलोक इति दर्शयति कः पर लोकं दृष्ट्वेहायातः तथा चोचुः
पिव खाद च साधु शोभने !यदतीतं वरगात्रि ! तन्न ते। नहि भीरू !गतं निवर्तते समुदयमात्रमिदं कलेवरम् ॥१॥ तथा एतावानेव पुरुषो यावानिन्द्रियगोचरः । भद्रे वृकपदं पश्च यद् वदन्त्यबहुश्रुताः ॥२।।इति॥१०॥
टीकार्थ - सर्वज्ञ पुरुषों ने बतलाया है कि त्रुटित-टूटी हुई आयु जोड़ी नहीं जा सकती । कहा जाता है कि-दिन और रात्रि, दण्ड और घड़ी के प्रमाण से आयु को क्षीण करते जाते हैं । जो आयु बीत जाती है, वह फिर लौटकर नहीं आती । यद्यपि प्राणियों की आयु की ऐसी अवस्थिति है, तो भी अज्ञान और अविवेक के कारण जीव अशुभ कर्मों के अनुष्ठान में लगा रहता है । प्रगल्भता पूर्वक-धृष्टता के साथ पाप पूर्ण प्रवृत्तियों में लगे रहते हैं । वे अशुभ कर्मों को करते हुए भी लज्जित नहीं होते । वैसा करते उन्हें जरा भी संकोच नहीं होता । उन पाप कर्मा पुरुषों को वैसे पाप कार्य करते हुए देखकर यदि कोई व्यक्ति उन्हें वैसा न करने की शिक्षा देता है तो वे अपने झूठे पांडित्य का घमण्ड करते हुए जवाब देते हैं कि-हमको तो वर्तमान काल से मतलब है क्योंकि वर्तमान काल में जो पदार्थ हैं वे ही वास्तव में सत्य है । भूत और भविष्य के पदार्थ सत्य नहीं है । भूतकाल के पदार्थ विनष्ट हैं और भविष्य के अनुत्पन्न है । अतः वे दोनों ही अविद्यमान हैं । बुद्धिमान व्यक्ति वर्तमान के पदार्थों को ही मानते हैं क्योंकि उन्हीं से उनके प्रयोजन सिद्ध होते हैं । अतएव उनका कथन है कि यह लोक ही सत् है-वास्तव में इसी का अस्तित्त्व हैं । परलोक के होने में कोई प्रमाण नहीं है । कौन
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