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श्री सूत्रकृताङ्ग सूत्रम्
जाना चाहिए कि भिक्षाचारी की तरह अन्य आचारों में भी अभिनव दीक्षित होने के कारण अनिपुण है । प्रव्रजित जीवन का पालन करना क्या कठिन है, इस प्रकार जो गरजता है वह अपने आपको शिशुपाल की तरह तभी तक शूरवीर मानता है जब तक उसका विजयी पुरुष की तरह संयम से सामना नहीं होता-संयम का सेवन नहीं करता । इस गाथा में संयम को लूहं रूक्षं कहा गया है, क्यों कि जैसे सूखे या सूखे स्थान पर कोई वस्तु चिपकती नहीं, उसी प्रकार जहां जीवन में संयम होता है वहां कर्म नहीं चिपकते । उस संयम की प्राप्ति होने पर-उस संयम का पालन करने का मौका आने पर बहुत से गुरुकर्मा- भारी कर्मों वाले अल्पसत्व-आत्म बल विहीन प्राणी भग्न हो जाते हैं, टूट जाते हैं ।
जया हेमंत मासंमि, सीतं फुसइ तत्थ मंदा विसीयंति, रज्जहीणा व
छाया
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अनुवाद - जैसे हेमंत ऋतु - मार्गशीर्ष, पौष के महिनों में सर्दी सब अंगों में छा जाती है, उस समय मन्द मूर्ख जीव राज्यहीन - राज्य से च्युत क्षत्रिय की ज्यों विषाद का अनुभव करते हैं, दुःखित होते हैं ।
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टीका - संयमस्य रूक्षत्वप्रतिपादनाद्याह- 'जया हेमंते' इत्यादि 'यदा' कदाचित् 'हेमन्त मासे' पौषादौ 'शीतं' सहिमकणवातं ' स्पृशति' लगति 'तत्र' तस्मिन्न सह्ये शीतस्पर्शे लगति सति एके 'मन्दा' जड़ा गुरु कर्माणो 'विषीदन्ति' दैन्यभाव मुपयान्ति 'राज्यहीना' राज्यच्युताः यथा क्षत्रिया राजान इवेति ॥४॥ उष्णपरीषह मविकृत्याह
यदा हेमंतमासे शीतं स्पृशति सर्वाङ्गम् । तत्र मन्दा विषीदन्ति राज्यहीना इव क्षत्रियाः ॥
टीकार्थ - संयम रूक्ष है, यह प्रकट करने के लिए कहा जाता है जब कभी हेमन्त ऋतु के पौष आदि (मार्गशीर्ष व पौष) मास में हिम कणों से - ओस की बून्दों से युक्त पवन के साथ सर्दी लगने लगती है, उस समय असह्य शीत के स्पर्श से न सही जा सकने योग्य सर्दी के कारण कतिपय मन्द-अज्ञानी, गुरुकर्माकर्मों से भारी पुरुष, इस प्रकार दीनता का अनुभव करते हैं। जैसे राज्य से च्युत हुआ क्षत्रिय राजा अनुभव करता हो ।
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छाया
पुट्टे गिम्हाहितावेणं, विमणे सुपिवासिए । तत्थ मंदा विसीयंति, मच्छा अप्पोद्दए जहा ॥५॥
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सव्वगं ।
खत्तिया ॥४॥
स्पृष्टो ग्रीष्माभितापेन विमनाः सुपिपासितः ।
तत्र मन्दाः विषीदन्ति मत्स्या अल्पोदके यथा ॥
अनुवाद ग्रीष्म ऋतु के ज्येष्ठ आषाढ़ महिनों में जब भीषण गर्मी पड़ने लगती है, उस समय उस
गर्मी के अभिताप से पीडित पिपासित नवदीक्षित मुनि विमनस्क - खिन्न हो जाता है, उस समय मंद- अज्ञानी
पुरुष इस प्रकार विषाद का - दुःख का अनुभव करते हैं जैसे अल्प जल में मछलियाँ विषण्ण- दुःखित हो जाती
हैं
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