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श्री सूत्रकृताङ्ग सूत्रम्
भी प्राप्त होता है जिसका अर्थ यह है कि मुनि समत्त्व भावपूर्वक ऊपर जो विघ्न बाधाएं - आपत्तियां बतलाई गई है, उन्हें सहता जाये ।
पण्णसमत्ते सया जए समताधम्म मुदाहरे मुणी । सुमे उ सया अलूसए णो कुज्झे णो माणि माहणे ॥६॥
छाया
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अनुवाद - प्रज्ञा समाप्त-जिसने प्रज्ञा या विवेक आत्मसात् किया है, ऐसा बुद्धिशील साधु सदैव कषायादि आत्म शत्रुओं को पराजित करे, वह समताधर्म का समस्त प्राणी मात्र की समानता का, उनकी हिंसा न करने का उपदेश करे । वह कभी भी अपने संयम में बाधा न आने दे। वह कदापि क्रोध न करे । अभिमान न करे ।
टीका पुनरप्युपदेशान्तरमाह - प्रज्ञायां समाप्त :- प्रज्ञा समाप्तः पटुप्रज्ञः, पाठान्तरं वा 'पण्हसमत्थे' प्रश्न विषये प्रत्युत्तरदानसमर्थः 'सदा' सर्वकालं जयेत्, जेयं कषायादिकमिति शेषः । तथा समया समता तया धर्मम्-अहिंसादिलक्षणम् 'उदाहरेत्' कथयेत् 'मुनिः' यतिः सूक्ष्मे तु-संयमे यत्कर्त्तव्यं तस्य 'अलूषकः' अविराधकः, तथा न दृन्यमानो वा पूज्यमानो वा क्रुध्येन्नापि 'मानी' गर्वितः स्यात् 'माहणो' यतिरिति ॥६॥
प्रज्ञासमाप्तः सदा जयेत् समताधर्म मुदाहरेन्मुनिः । सूक्ष्मे तु सदाऽलूषकः नो क्रुध्येन्नो मानी माहनः ॥
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छाया
टीकार्थ आगमकार फिर दूसरे प्रकार से उपदेश देते हैं, जिसने प्रज्ञा को भली भांति प्राप्त कर लिया है, जो पूर्णतः बुद्धिशील है, विवेकी हैं, उन्हें प्रज्ञासमाप्त कहा जाताहै । यहां पर 'पण्हसम्मत्थे - प्रश्न समर्थ:' यह अन्य पाठ भी प्राप्त होता है । इसका अभिप्राय 'किसी प्रश्न का उत्तर देने में सक्षम पुरुष होता है । साधक जीतने योग्य कषायों को जीते। अहिंसा आदि धार्मिक सिद्धान्तों को समत्त्वभाव के साथ उपदिष्ट करे । वह संयमात्मक साधना की कभी विराधना न करे । वह यदि हन्यमान हो मारा जाता हो, तो भी क्रोध न करे और पूज्यमान या सम्मानित हो तो भी अभिमान न करे ।
बहजणणमणमि संवुडो सव्वट्ठेहिं णरे अणिस्सिए ।
हृदएव सया अणा विले धम्मं पादुरकासी कासवं ॥७॥
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बहुजननमने संवृत्तः
सवार्थैर्नरोऽनिश्रितः ।
हृदइव सदाऽनाविलो धर्मं प्रादुरकार्षीत्काश्यपम् ॥
अनुवाद धर्म बहुत जनों द्वारा नमन करने योग्य आदर करने योग्य या स्वीकार करने योग्य है।
साधक उसके परिपालन में सदैव जागरूक रहता हुआ, धन वैभव आदि बाह्य पदार्थों में आसक्त न होता हुआ, सरोवर की तरह सदा निर्मल होकर, काश्यप गोत्रीय भगवान महावीर द्वारा उपदिष्ट धर्म को प्रकट करें। स्वयं उसका पालन करे - औरों को भी वैसा करने हेतु प्रेरित करें ।
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