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श्री सूत्रकृताङ्ग सूत्रम्
डहरा बुढ्ढा य पासह गब्भत्था वि चयंति माणवा । बट्टयं हरे एवं आउखयंमि तुट्टई ॥२॥
सेणे जह
छाया
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अनुवाद भगवान ऋषभ कहते हैं - यह संसार ऐसा है कि बालक, वृद्ध तथा गर्भस्थ मनुष्य भी इस जीवन को छोड़ देते हैं, मर जाते हैं। जरा देखो, विचार करो । जैसे बाज वर्तक- बटेर पक्षी के प्राण हर लेता है - मार डालता है । उसी प्रकार आयु क्षीण होने पर मृत्यु जीवन को झपट लेती है ।
दहराः वृद्धाश्च पश्यत गर्भस्था अपि त्यजन्तिमानवाः । श्येनो यथा वर्तिकां हरेदेवमायुः क्षये
त्रुट्यति ॥२॥
टीका भगवानेव सर्वसंसारिणां सोपक्रमत्वादनियतमायुरुपदर्शयन्नाह - डहराः बाला एव केचन जीवितं त्यजन्ति तथा वृद्धाश्च गर्भस्था अपि एतत्पश्यत यूयं, केते ? मानवाः मनुष्याः तेषामेवोपदेशदानार्हत्वान्मानवग्रहणं, वह्वपायत्वादायुषः सर्वास्वप्यवस्थासु प्राणी प्राणांस्त्यजतीत्युक्तं भवति, तथाहि त्रिपल्योपमायुष्कस्यापि पर्य्याप्त्यनन्तरमन्तमुहूर्तेनैव कस्य चिन्मृत्युरुपतिष्ठतीति । अपि च "गर्भस्थं जायमान" मित्यादि । अत्रैव दृष्टान्तमाहयथा श्येनः पक्षिविशेषो वर्त्तकं तित्तिरजातीयं हरेद् व्यापादयेद् एवं प्राणिनः प्राणान् मृत्युरपहरेत्, उपक्रमकारणमायुष्क मुपक्रामेत्, तदभावे वा आयुष्यक्षये त्रुट्यति व्यवच्छिद्यते जीवानां जीवितमितिशेषः ॥२॥
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टीकार्थ - समस्त सांसारिक जीवों की आयु सौपक्रम-उपक्रम सहित होने के कारण नियत निश्चित नहीं है-यह दिग्दर्शन कराते हुए भगवान ऋषभ कहते हैं
छाया
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कोई शैशव में ही अपने जीवन को त्याग देते हैं तथा कई वृद्ध होकर मृत्यु को प्राप्त होते हैं और कई ऐसे भी हैं जो गर्भ में ही चले जाते हैं । यह देखो ! इस पर विचार करो । यों जीवन को त्याग करने वाले वे कौन हैं ? वे मानव हैं । यद्यपि सभी प्राणियों की यही स्थिति है तथापि मनुष्य ही उपदेश देने योग्य होते हैं । इसलिये यहां मनुष्यों को ही ग्रहण किया गया है । इसका अभिप्राय यह है कि आयु बहुत ही अपायोंविघ्न बाधाओं से पूर्ण हैं । इसलिये सभी अवस्थाओं में प्राणी प्राण त्याग कर जाते हैं - मर जाते हैं । कई ऐसे प्राणी हैं जो त्रिपल्योपम आयु प्राप्त करके भी पर्याप्ति के अनन्तर ही अन्तर्मुहूर्त में मर जाते हैं, अपनी जीवन लीला का संवरण कर जाते हैं । इसलिये कहा गया है कि कोई गर्भ में ही, कोई जन्मते ही अपने प्राण छोड़ देते हैं ।
इस विषय का स्पष्टीकरण करने के लिये आगमकार एक दृष्टान्त उषस्थित करते हैं- जैसे बाज तित्तिर जातीय तीतर नामक पक्षी या बटेर को मार डालता है, उसी प्रकार मृत्यु प्राणियों के प्राणों का अपहरण कर लेती है । आयुष्य के क्षय का जब कारण उपस्थित हो जाता है तो प्राणियों का जीवन टूट जाता है, व्यवच्छिन्न हो जाता है- नष्ट हो जाता है ।
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मायाहिं पियाहिं, लुप्पड़, नो सुलहा सुगई य पेच्चओ एयाइं भयाई पेहिया, आरम्भा विरमेज्ज सुव्व ॥ ३ ॥
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मातृभिः पितृभि लुप्यते नो सुलभा सुगतिश्च प्रेत्य । एतानि भयानि प्रेक्ष्य आरंभाद्विरमेत सुव्रतः ॥
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