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जैनदर्शन में बाधक कारणों का अतिसूक्ष्म विश्लेषण करके इनके आन्तरिक और बाह्य दो भेद बताए गए हैं। जहाँ तक आन्तरिक बाधाओं का प्रश्न है, जैनाचार्यों का कहना यही है कि व्यक्ति इन पर विजय प्राप्त करने हेतु इच्छारोधन रूप आभ्यन्तर तप तथा अनशन आदि रूप बाह्य तप करे । जहाँ तक बाह्य बाधाओं का प्रश्न है, जैनाचार्यों का सदुपदेश यही है कि व्यक्ति इनका सामना करते हुए नैतिक एवं आध्यात्मिक मूल्यों से कभी नहीं डिगे। वह धर्म, अर्थ एवं काम इन तीनों पुरुषार्थों में धर्म (नैतिकता) को सर्वोपरि महत्त्व दे और प्राप्त समस्या का सम्यक् समाधान खोजे ।
जीवन - प्रबन्धन के सन्दर्भ में नियोजन के
(ख) नियोजन के प्रकार (Types of Planning) मुख्य दो प्रकार हैं
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यह नियोजन समयावधि को आधार
1) समय-आधारित नियोजन (Time based Planning) बनाकर किया जाता है, जिसके दो प्रकार होते प्रथम दीर्घकालीन नियोजन (Long term Planning) है, जो लम्बी अवधि के लिए होता है एवं द्वितीय अल्पकालीन नियोजन ( Short term Planning) है, जो अल्प अवधि के लिए होता है ।
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जैनदृष्टि के आधार पर इन्हें परम्पर एवं अनन्तर लक्ष्य की प्राप्ति के लिए किया जाने वाला नियोजन कहा जा सकता । इतना ही नहीं, जैनदर्शन में समय के अनेक विभाग एवं उनके नियोजनों की चर्चा की गई है, जैसे दैनिक (रात्रिक/ दैवसिक), पाक्षिक, चातुर्मासिक, वार्षिक आदि । कहीं-कहीं पर यावत्कथिक (दीर्घावधि) एवं इत्वरकथिक (अल्पावधि) नियोजन करने का निर्देश दिया गया है।
इन दोनों के आधार पर भी
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इसमें विभिन्न उद्देश्यों को आधार
2) उद्देश्य आधारित नियोजन (Objective based Planning) बनाकर नियोजन किया जाता है। आधुनिक विद्वान् इस प्रकार के नियोजन में नवाचार, विकासवादी एवं क्रियात्मक योजनाओं ( Innovative, Developmental and Functional Planning) का समावेश करते हैं,161 किन्तु उनकी दृष्टि भौतिक उन्नति तक ही सीमित है । जहाँ तक जैनदर्शन का सवाल है, इसमें जीवन-निर्वाह और जीवन-निर्माण दोनों के उचित महत्त्व को ध्यान में रखकर नियोजन करने का निर्देश किया गया है। जीवन निर्वाह के लिए 'अर्थ' एवं 'भोग' तथा जीवन-निर्माण के लिए 'धर्म' एवं 'मोक्ष' को मुख्यता दी गई है। इस प्रकार, जीवन निर्वाह से लेकर जीवन - निर्माण तक बहुआयामी उद्देश्य बनाकर, अन्ततः जीवन - निर्वाण (मोक्ष) की प्राप्ति रूप परम उद्देश्य (Ultimate Aim ) का नियोजन करने का निर्देश किया गया है। यह जैनआचारमीमांसा का वैशिष्ट्य है ।
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उपर्युक्त चर्चा के आधार पर कहा जा सकता है कि नियोजन लक्ष्य प्राप्ति हेतु एक अनिवार्य प्रयास है, जो पूर्वानुमान पर आधारित है। इसमें दूरदर्शिता, बुद्धिमत्ता तथा विवेक की आवश्यकता होती है और इसीलिए आचार्य हेमचंद्र ने दूरदर्शिता को व्यक्तित्व का एक आवश्यक अंग माना है। नियोजन एक लोचपूर्ण प्रक्रिया भी है, जिसमें देश, काल एवं परिस्थिति के अनुरूप संकुचन तथा अध्याय 1: जीवन-प्रबन्धन का पथ
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