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का सामर्थ्य) होता है, उसे वस्तुत्व गुण कहते हैं। ★ द्रव्यत्व गुण - जिस शक्ति के कारण द्रव्य की अवस्थाएँ निरन्तर बदलती रहती हैं, उसे
द्रव्यत्व गुण कहते हैं। ★ प्रमेयत्व गुण - जिस शक्ति के कारण द्रव्य किसी न किसी ज्ञान का विषय बनता है, उसे
प्रमेयत्व गुण कहते हैं। ★ अगुरुलघुत्व गुण - जिस शक्ति के कारण द्रव्य में अखण्डता बनी रहती है अर्थात् एक द्रव्य
दूसरे द्रव्य रूप नहीं होता और द्रव्य में रहने वाले अनन्तगुण बिखरकर अलग-अलग नहीं होते,
उसे अगुरुलघुत्व गुण कहते हैं। ★ प्रदेशत्व गुण - जिस शक्ति के कारण द्रव्य का कोई न कोई आकार अवश्य रहता है, उसे प्रदेशत्व गुण कहते हैं।
इन छह सामान्य गुणों को जानकर आत्मा का अन्य पदार्थों से क्या सम्बन्ध है, यह स्पष्ट हो जाता है।
उपर्युक्त षड्द्रव्य रूप विश्व-व्यवस्था के आधार पर साधक अपनी भ्रान्तियों को नष्ट करता हुआ निम्नलिखित सिद्धान्तों को आत्मसात् कर आध्यात्मिक साधना में इनका प्रयोग कर सकता है14 -
विश्व से सम्बन्धित सिद्धान्त ★ यह विश्व स्वयं-सिद्ध है एवं इसका कर्ता-धर्ता-हर्ता ईश्वर नहीं है। ★ यह विश्व सदा से था, है और सदा रहेगा। ★ ईश्वर से प्रलोभन-पूर्ति या भय–मुक्ति सम्बन्धी कामना करना व्यर्थ है।
द्रव्य से सम्बन्धित सिद्धान्त
* प्रत्येक द्रव्य स्वयम्भू है। ★ प्रत्येक द्रव्य अनन्त गुणात्मक है, शून्य नहीं।। ★ प्रत्येक द्रव्य का कर्ता-धर्ता वह स्वयं है, अतः वह स्वतंत्र है। ★ मैं आत्मा हूँ और ज्ञान-दर्शनादि मेरी शक्तियाँ हैं। ★ ये देह, वस्त्र, आभूषण, बंगला, गाड़ी आदि पुद्गल हैं और मुझसे सर्वथा भिन्न हैं। ★ ये परिजन, मित्र आदि जीव भी मुझसे भिन्न हैं। ★ विश्व के अनन्त द्रव्यों एवं मेरा सह-अस्तित्व सदा से था, है और रहेगा, अतः अन्यों पर अपना
एकाधिकार जमाना व्यर्थ है। ★ कोई भी द्रव्य छोटा-बड़ा नहीं होता, क्योंकि सभी अनन्त गुणों के स्वामी हैं।
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जीवन-प्रबन्धन के तत्त्व
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