Book Title: Jain Achar Mimansa me Jivan Prabandhan ke Tattva
Author(s): Manishsagar
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

View full book text
Previous | Next

Page 895
________________ विकारी दशा विकृ विकेन्द्रीकरण विक्षोभ विद्वेष विधा विधेयात्मक विनिमय विपणन विपर्यय | विभाव विभूति विमुख विवरण विवेच्य विश्लेषण 783 विष अनुष्ठान विषकुम्भ विषयाकांक्षा विष्टा विसंगति विहित वीतरागी वैयक्तिक | वैयावृत्य वैविध्य व्यवहाराभासी व्यवहार्य व्यापक व्याप्य व्युत्पत्ति श शिष्टाचार - प्रशंसक | शुद्धात्मस्वरूप श्रृंखला श्रमण- श्रमणी श्रावक धर्म Jain Education International विभाव दशा खराब, बिगड़ना, रूप परिवर्तित होना, अप्राकृतिक, बिभत्स अधिकार आदि को अन्य विभागों में वितरित करना | आवेग, व्याकुलता, उद्विग्नता, उथल-पुथल, अस्त-व्यस्त (Disturbance) शत्रुता, वैर, जलन प्रकार, तरीका, अध्ययन की शाखा, जैसे कला, विज्ञान, प्रबन्धन आदि (Disciplene) सकारात्मक, विधान करने योग्य, उचित आदान-प्रदान व्यापार, विक्रय उल्टा, विरूद्ध, विपरीत विरूद्ध भाव, विकारी भाव | ऐश्वर्य हटना, विरत, प्रतिकूल, उदासीन अच्छी तरह वर्णन करना विवेचन करने योग्य अलग-अलग करना, छानबीन करना इसलोक की वांछा से किया गया धार्मिक अनुष्ठान जहर का कलश विषयों (भोगों) की इच्छा Hel (Stool) | असंगति, खराबी, बुराई, दोष विधान किया हुआ, विधि के अनुरूप किया हुआ, उचित जो राग-द्वेष से मुक्त हों व्यक्तिगत भक्तिपूर्वक सेवा-शुश्रूषा विविधता, अनेकरूपता, भिन्न-भिन्न | मिथ्यात्वी का एक प्रकार, जो निश्चय की उपेक्षा कर एकान्त से व्यवहार का आग्रह करने वाला हो व्यवहार के योग्य सर्वत्र फैला हुआ, विस्तृत, सर्वतोन्मुखी व्याप्त होने योग्य उत्पत्ति, मूल उद्गम, शब्द का मूल रूप सभ्य व्यवहार का समर्थक आत्मा का शुद्ध स्वरूप, निर्विकल्प समाधि | देखें, निश्चयाभासी क्रमबद्ध (Series) साधु-साध्वी गृहस्थ धर्म संक्षिप्त शब्दकोष For Personal & Private Use Only 13 www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 893 894 895 896 897 898 899 900