Book Title: Jain Achar Mimansa me Jivan Prabandhan ke Tattva
Author(s): Manishsagar
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 894
________________ मूर्त | मूल प्रवृत्ति मूल्य ल रूपी, रूप-रस-गंध-स्पर्श सहित मूल उत्पत्ति स्थान, आरम्भिक बिन्द, जड (Root) व्यक्ति की मूल इच्छाएँ, संज्ञा (Basic Instincts) कीमत, प्रतिष्ठा के योग्य, दार्शनिक साहित्य में 'Values' मूल्यांकन मूल्य आँकना, मुल्य का अनुमान करना (Valuation) मृगतृष्णा | अनहोनी बात, मायाजाल, भ्रम, ऐसी तृष्णा जिसकी तृप्ति सम्भव नहीं मृदुता कोमलता, अंहकाररहितता मोक्ष देखें, निर्वाण मौलिक असली, वास्तविक, मूलभूत (Original/Fundamental) य योग संयोग, कुल, एक भारतीय दर्शन विशेष, मन-वचन-काया की प्रवृत्ति, आत्मा की चंचलता यौनसंबंध विवाह संबंध. संभोग समागम (Sexual Relationship) रक्त-शोधन खून साफ करना रजत | चाँदी ! रत्नत्रय सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान एवं सम्यकचारित्र रूप धर्म रमण | लीनता, क्रीड़ा, विलास रूग्णता अस्वस्थता, बीमारी लंघन | स्वास्थ्य लाभ के लिए भूखा रहना। लक्षण असाधारण विशेषता, दो मिले हए पदार्थों को भिन्न-भिन्न करने वाली विशेषता | लक्ष्योन्मुखी लक्ष्य की ओर मुख होना लेश्या | कषायों से अनुरंजित मन, वचन, काया की प्रवृत्ति, जिसके कारण जीव स्वंय | को पुण्य-पाप से लिप्त करता है लोकोत्तर लोक से परे, मोक्ष लौकिक सांसारिक, लोक सम्बन्धी व वंचन धोखा देना, ठगी करना, धूर्तता वणिकवादी वाणिज्यवादी. व्यावसायिकी (Commercial) वस्तुगत सुख | बाहरी सुख, सांसारिक सुख वस्तुस्वरूप | वस्तु का स्वभाव, वस्तु की योग्यता, वस्तु का स्वतत्त्व वाङ्मय साहित्य, वाग्मिता, वचन से युक्त वाचना पढ़ना-सुनना वाच्यता-सामर्थ्य |अर्थ को व्यक्त करने की क्षमता वाल्मिक दीमक आदि के द्वारा बनाई गई मिटटी वाष्पोत्सर्जन भाप का उठना (Evaporation) वासुदेव तिरसठ शलाका पुरूषों (महापुरूषों) में से नौ पुरूष, तीन खण्ड राज्य के स्वामी, बलदेव के छोटे भाई जो मरकर नियमा नरक में जाते हैं विकथा | वह कथा जो कथन के योग्य न हो, विपरीत संवाद विकल्प | विभिन्नता, उपाय, 'मैं सुखी हूँ या मैं दुःखी हूँ' - इस प्रकार का हर्ष या खेद, मनोभावों का परिवर्तन की बॉबी जीवन-प्रबन्धन के तत्त्व 782 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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