Book Title: Jain Achar Mimansa me Jivan Prabandhan ke Tattva
Author(s): Manishsagar
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 896
________________ श्रावक-श्राविका श्रुतज्ञान श्रेणिबद्ध ष | षट्कर्तव्य षडावश्यक षड्जीवनिकाय | षड्विध कर्म संक्लेश संचरित संज्ञा संतप्त संपादित संप्रेषण संयोग-सम्बन्ध संरम्भ संलेखना संवर संविभाग संवृत्त संवेग संशय संशोधन संश्लेषण सकारात्मक सदसद् सद्भाव सप्त व्यसन गृहस्थ पुरूष-स्त्री, जो धर्म-पालन के इच्छुक हों | शास्त्र ज्ञान, मति ज्ञान से जाने पदार्थ के आधार पर अन्य पदार्थों का ज्ञान, | चिन्तन-मनन रूप ज्ञान कतार या पंक्ति में लगाया हुआ | छह प्रकार के कर्तव्य - जिन पूजा, गुरू उपासना, स्वाध्याय, संयम, तप व दान छह प्रकार के आवश्यक - सामायिक, ने स्तवन, गुरूवंदन, | प्रतिक्रमण, कायोत्सर्ग, प्रत्याख्यान छह प्रकार के जीव समुह - पृथ्वीकाय, अप्काय, तेउकाय, वायुकाय, | वनस्पतिकाय व त्रसकाय छह कर्म - असि, मसि, कृषि, विद्या, वाणिज्य व शिल्प | क्रोध, मान, माया व लोभादि कलुषित भाव स्थानांतरित होना, चलना, फैलना नाम, ज्ञान; आहार, भय, मैथुन और परिग्रह – इन चार विषयों की अभिलाषा | या वांछा पीड़ित, क्लांत, दुःखी भली-भाँति पूरा किया हुआ प्रेषित करना, भेजना, पहुँचाना (Communication / Transmission) योगानुयोग हुआ सम्बन्ध, दो या अधिक पदार्थों का मिलना या निकट आना हिंसा आदि कार्यों से सम्बन्धित विचार करना संथारा, समतापूर्वक देह का परित्याग करना नवीन कर्मों का रूकना, शुभाशुभ भावों का रूकना सुपात्र आदि के लिए वस्तुओं का उचित विभाजन भले प्रकार से जो ढंका हो अथवा ऐसा स्थान जो देखने में न आए घबराहट, खलबली, अतिरेक, मनोवेग, मनोभाव (Emotions) | शंका, संदेह शुद्ध करना, ठीक करना, सुधार करना, घटाना-बढ़ाना जोड़ना, मिलाना, परस्पर बांधना (Synthesis) स्वीकार करने योग्य, उचित, हितकारी भला और बुरा, यथार्थ और काल्पनिक अस्तित्व, विद्यमानता, शुभ भाव, अच्छे भाव | सात प्रकार की बुरी आदतें - शिकार, जुआ, चोरी, मांसाहार, मदिरापान, वेश्यागमन, परस्त्रीगमन । समता, समाधि, राग-द्वेष रूप विषमता से रहित भाव । मेल-मिलाप (Coordination) | मिला हुआ | तीर्थंकर भगवान की धर्मसभा | जो समाज से उदासीन हो । | समान अन्तर पर होने वाले (Parallel) जीवन-प्रबन्धन के तत्व 784 समत्व समन्वय समन्विति समवसरण समाज-उदासीन समानान्तर 14 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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