Book Title: Jain Achar Mimansa me Jivan Prabandhan ke Tattva
Author(s): Manishsagar
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 888
________________ क्रियान्वयन योजना को कार्य में लाना गच्छ समदाय विशेष, धार्मिक समाज की परम्परा विशेष गणधर तीर्थंकर भगवान् के साधु-समुदाय के नायक; द्वादशांगी के रचयिता गणावच्छेदक प्रचार, उपधि, लाभ आदि के लिए गण से अलग होकर विचरण करने वाला साधु गणि गच्छनायक, आगम अंग ज्ञाता, आचार्य |गणितानुयोग करणानुयोग, चार अनुयोगों में से एक, लोक-अलोक के विभाग, युगों के परिवर्तन और चारों गतियों के स्वरूपादि को बताने वाले शास्त्र गत्यात्मक बदलता हआ, गतिशील, परिवर्तनशील (Dynamic) गरल अनुष्ठान | परलोक की वांछा से किया गया धार्मिक अनुष्ठान गहन सघन, गहरा, रहस्यमय, कठिन गीतार्थ उत्सर्ग व अपवाद के ज्ञाता ऐसे विशिष्ट साधु गुणश्रेणी निर्जरा | गुण शब्द का अर्थ है - गुणाकार (Multiplication) तथा उसकी श्रेणी. आवली या पंक्ति का नाम गुणश्रेणी है, अतः प्रतिसमय गुणाकार होते हुये कर्म परमाणुओं का झड़ना गुणश्रेणी निर्जरा है गुण संक्रमण कर्म परमाणुओं का प्रतिसमय असंख्यात गुणश्रेणी क्रम से अन्य स्वजातीय प्रकृति रूप परिणमन, जैसे - असाता वेदनीय का साता वेदनीय में संक्रमण | ग्रन्थिभेद | सम्यग्दर्शन एवं वीतराग दशा की प्राप्ति में बाधक कारणों का छेदन ग्रहणात्मक शिक्षा सैद्धांतिक शिक्षा घटक भाग, उपभाग, अवयव, रचने वाला अंश घाति घात (नाश) करने वाला घानी तेल निकालने का यंत्र च | चक्रवात आँधी-तूफान, बवंडर चतुष्टय चार पक्ष वाला चतुष्पद चार पैरों वाले जीव चौदह नियम | अनुव्रती श्रावक के द्वारा प्रतिदिन पालने योग्य चौदह नियम | चरण-करणानुयोग चरणानुयोग, चार अनुयोगों में से एक, श्रावक व श्रमण के चारित्र की उत्पत्ति, वृद्धि व रक्षा के साधनों का वर्णन करने वाले शास्त्र चलित रस एक अभक्ष्य, वह खाद्य पदार्थ जिसका स्वाभाविक रूप, रस, गंध व स्पर्श बदल जाता है | चाटुकारिता चापलूसी (Flattering) चैतन्य शक्ति ज्ञान शक्ति, आत्मिक शक्ति चैतसिक चेतन (आत्मा) सम्बन्धी | छिद्रान्वेषण दोष-दष्टि, दसरे के दोषों को देखना ज | जितेन्द्रियता | इन्द्रियों पर विजय जीव आत्मा, चेतन (Soul) जीवाश्म मृत जीवों के अवशेष जैविक बाह्य जीवन के घटकों - शरीर, धन, परिवार आदि से सम्बन्धित जैविक वासना | शारीरिक या भौतिक कामना, बाह्य जीवन से सम्बन्धित इच्छाएँ जीवन-प्रबन्धन के तत्त्व 776 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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