Book Title: Jain Achar Mimansa me Jivan Prabandhan ke Tattva
Author(s): Manishsagar
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 887
________________ उपाध्याय उपाश्रय उभयाभासी जो सम्पूर्ण द्वादशांग का अभ्यास करके मोक्षमार्ग में स्थित हों तथा मोक्ष के इच्छुक मुमुक्षुओं को उपदेश देते हों आराधक साधुओं व श्रावकों के ठहरने/आराधना करने का स्थान मिथ्यात्वी का एक प्रकार, जो निश्चय और व्यवहार - दोनों का साधना में समावेश करने वाला हो, लेकिन जैसा इनका स्वरूप होना चाहिए, वैसा नहीं हो उत्तरीय एकत्वभाव एकदेश ऐ | ऐकान्तिक औचित्य औदयिक भाव कठोर कदाग्रह कर्त्ता-भोक्ता कर्तृत्व भाव कर्म कर्मकाण्ड कर्ममल कल्पवृक्ष कषाय कामधेनु काय-क्लेश दुपट्टा, ऊपर से ओढ़ने का वस्त्र, ऊपर पहनने का वस्त्र | पर पदार्थों में एकपने या मैं पने का भाव एक अंश में एक पक्षीय, एक देशीय | उपयुक्त | कर्म के उदय से उत्पन्न होने वाले जीव के भाव निर्दय. कडे हृदय वाला, सख्त कु-आग्रह, बुरा आग्रह, बुरी जिद करने वाला व भोगने वाला पर पदार्थों के कर्ता पने का भाव आत्मा को आबद्ध करने वाली पुद्गल परिणति, मन-वचन-काया की शुभ | या अशुभ प्रवृत्ति, कार्य | धार्मिक विधियाँ एवं क्रियाकलाप कर्म रूपी अशुद्धि | ऐसा वृक्ष जो युगलिक मनुष्यों की इच्छापूर्ति करता है | आत्मा में होने वाली क्रोध, मान, माया और लोभ रूप कलुषताएँ | स्वर्ग की गाय, जो सभी कामनाएं पूरी करती है। | बाह्यतप विशेष, जिसमें शरीर को सुख मिले, ऐसी भावना को त्याग दिया | जाता है सीमित काल के लिए शरीर एवं अन्य पदार्थों से ममत्व का त्याग कर | आत्मध्यान में लीन होना | कार्य या काम करने का तरीका या विधि (Procedure) नियम विरूद्ध व्यापार (Black-marketing) डॉवाडोल, 'क्या करूँ, क्या न करूँ' वाली स्थिति | माया नुकीली घास, जो यज्ञ-पूजन में काम आती है अपरिवर्तित या संकीर्ण विचारों वाला, कुए का मेंढक, अल्पज्ञ जिसका काम पूरा हो चुका है एहसान न मानने वाला कार्य, कर्तव्य, कर्म सत्ता या अधिकारों को एक स्थान पर केन्द्रित करना सर्वज्ञ सर्वदर्शी कायोत्सर्ग कार्यविधि कालाबाजारी | किंकर्तव्यविमूढ़ | कुटिलता | कुश-घास | कूपमण्डुक कृतकृत्य कृतघ्न कृत्य केन्द्रीकरण | केवलज्ञानी | केवलदर्शी 775 संक्षिप्त शब्दकोष Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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