Book Title: Jain Achar Mimansa me Jivan Prabandhan ke Tattva
Author(s): Manishsagar
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 885
________________ अहेत् पूज्य, प्रथम परमेष्ठी, वीतराग, सर्वज्ञ, जिन, राग-द्वेषरूपी शत्रुओं के नाशकर्ता अर्हता योग्यता, उपयुक्तता अवधारणा सुविचारित धारणा (Concept) अवमान अपमान, खेत आदि को मापने का डण्डा आदि अवशिष्ट बचा हुआ, बाकी, शेष रहा हुआ अवसर्पिणी काल-चक्र का वह विभाग, जिसमें जीवों की आयु, बल, ऊँचाई आदि क्रमशः घटती जाती हैं अवसाद उदासी, खेद (Depression) अविरति अल्प भी प्रत्याख्यान (प्रतिज्ञा) नहीं लेना अव्याबाध बाधारहित अव्याबाध सुख बाधारहित सुख अष्टप्रवचन माता | तीन गुप्ति और पाँच समिति, जो माता के समान मुनियों के ज्ञान, दर्शन और चारित्र की रक्षा करती हैं | असंख्य अनगिनत, अगणित असत् कार्य | अयथार्थ कार्य, असामाजिक कार्य, अनुचित कार्य असामाजिक तत्त्व । | समाज-विद्रोही (Antisocial Element) अहितकारी भाषा | जिससे हित न हो आ| आकिंचन्य प्राप्त शरीर में भी मच्छो या ममत्व का त्याग करना आकुल-व्याकुल परेशान, अशांत, चंचलित आचारशास्त्र | 'आचरण' विषयक शास्त्र (Ethical Scriptures) आचार्य | जो योग्य आचार जानते हों, करते हों और अन्य साधुओं से कराते हों। आत्म-अभिमुखता आत्मानुभूति के सम्मुख होना | आत्मगत सुख आंतरिक सुख, आत्मिक सुख आत्मतोष | आत्म-तुष्टि, आत्म-संतुष्टि, स्वयं की खुशी आत्म-प्रवंचना स्वयं को ठगना या धोखा देना आत्मभ्रान्ति स्वयं के बारे में भ्रान्ति आत्मरमणता | आत्मा में रमण करना, निर्विकल्प समाधि में लीन होना आत्मसमाहित | आत्मा में लीन, समाधिस्थ आत्मार्थी जिसका उद्देश्य एकमात्र आत्महित हो आत्माश्रित आत्मा पर आश्रित आत्मेतर आत्मा से भिन्न आत्मोपलब्धि स्वयं को प्राप्त करना आधार वह जिसका सहारा लिया जाए आधार-आधेय | आश्रय देने वाले (जैसे - भूतल) का आश्रय लेने वाले (जैसे - घट) से | सम्बन्ध संबंध आधिपत्य स्वामित्व, प्रभुत्व, अधिकार, राज्य आधेय वह जिसके द्वारा सहारा लिया जाए आध्यात्मिक आत्मा से संबंधित संक्षिप्त शब्दकोष बार्ग 773 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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