Book Title: Jain Achar Mimansa me Jivan Prabandhan ke Tattva
Author(s): Manishsagar
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 883
________________ अर्थ शब्द अ | अकर्मण्य अक्रियाशील, निष्क्रिय. निकम्मा अकल्प्य अचार एक अभक्ष्य, बिगड़ा हुआ अचार अकषायवृत्ति ऐसी प्रवृत्ति जिसमें कषाय नहीं हो अघाती जो घातक न हो अजीव | पुद्गल, धर्मद्रव्य, अधर्मद्रव्य, काल और आकाश - ये पाँच प्रकार के द्रव्य अटवी वन, जंगल अणुव्रत स्थूल हिंसा, झूठ, चोरी, अब्रह्मचर्य व परिग्रह का त्याग करने रुप श्रावक के पाँच नियम अतिवादिता मर्यादा से अधिक होना। अतिशय | विशिष्ट प्रभाव, तीर्थकर के जन्मादि के समय घटने वाली अलौकिक/असाधारण घटनाएँ। अतीन्द्रिय जो इन्द्रिय से परे हो, आत्मा, परमात्मा अतुलनीय जिसकी किसी से तुलना न हो सके अध्यवसाय शुभ-अशुभ कर्मबंध कराने वाला विकल्प, बुद्धि, व्यवसाय, अध्यवसान, मति, विज्ञान, चित्त, भाव, परिणाम अनंगक्रीड़ा | लिंग/योनि को छोड़कर अप्राकृतिक अंगों से क्रीड़ा या केलि करना । अनंतकाय एक शरीर जिसमें अनंत जीव रहते हों अनगार धर्म मुनिधर्म, पृथ्वीकायादि छह प्रकार के जीवों के रक्षक रूप, उत्तम क्षमा आदि दस प्रकार के धर्म को धारण करने रूप, इन्द्रिय-विषयों से विरक्ति रूप, शीतादि बाईस परिषहों को सहन करने रूप, अहिंसादि छह व्रतों के धारण रूप, कषाय-जय रूप, अंतरंग में भावों एवं बाह्य में मन-वचन-काययोग की विशुद्धि रूप, मारणान्तिक उपसर्गों में समता रूप, अंगों को संकुचित रखने रूप तथा निरतिचार चारित्र पालन रूप धर्म अनजानाफल | एक अभक्ष्य, जिसके फल नाम तथा गुण-दोषों का सही परिचय न हो अनध्यवसाय 'यह क्या है, इस प्रकार का अस्पष्ट ज्ञान अननष्ठान अनुष्ठान | बिना मनोयोग के केवल देखा-देखी किया गया धार्मिक अनष्ठान अनन्तधर्मात्मक वह वस्तु जिसमें अनन्त गण हों, अनन्त धर्म हों अनन्तर-साध्य निकटवर्ती लक्ष्य, जो परम्पर-साध्य की प्राप्ति में सहयोगी हो अनवरत बिना रूकावट के, लगातार अनात्म आत्मा से भिन्न पदार्थ अनादिनिधन |जिसका आदि और अन्त न हो अनुकूल | पक्ष में रहने वाला, मनोवांछित, प्रीतिकर (Favourable) अनुकूलन | आवश्यक परिवर्तन कर अनुकूल बनना (Adaptation) अनुक्रिया कार्य के बाद का प्रभाव, प्रतिक्रिया (Response) अनुप्रेक्षा बारम्बार चिंतन-मनन करना अनुबन्ध-चतुष्टय परस्पर सम्बद्ध चार पक्ष या तथ्य अनुभवगोचर | अनुभव से जाना गया अनुयोग प्रश्न, जिज्ञासा, पूछताछ, जिनवाणी के उपदेश की पद्धति 771 संक्षिप्त शब्दकोष Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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