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अध्याय 14
जीवन-प्रबन्धन : एक सारांश (A Summary of Life Management)
मानव-जीवन बहुआयामी है, अतः उसके प्रबन्धन हेतु हमें जीवन के विविध पक्षों को समझना होगा। पुनः जीवन एक निष्क्रिय अस्तित्व नहीं है। जीवन का अर्थ ही सक्रियता है और सक्रियता विभिन्न क्षेत्रों में रहती है। अतः जीवन-प्रबन्धन के अनेक क्षेत्र हैं, जिन पर प्रस्तुत शोध-प्रबन्ध में हमने विचार किया है।
__ जहाँ तक मानव-जीवन का प्रश्न है, उसमें वासना और विवेक दोनों ही अपरिहार्य रूप से रहे हुए हैं। मनुष्य को हम विवेकयुक्त पशु (Man is a Rational Animal) कहकर परिभाषित करते हैं, जो यह सिद्ध करता है कि उसमें वासना और विवेक दोनों ही तत्त्व मौजूद हैं, किन्तु मानव-जीवन की सार्थकता इसी में मानी गई है कि उसकी वासनाओं पर विवेक का अंकुश रहे।
जीवन-प्रबन्धन वस्तुतः जैविक-वासनाओं पर विवेक का अंकुश लगाने का ही एक प्रयत्न है। यह हमें एक सम्यक् जीवन जीने की कला सिखाता है। यह अपने आप में एक विज्ञान भी है और कला भी। 'विज्ञान' सत्य को जानने का एक प्रयत्न है और 'कला' सत्य को जीने का एक प्रयत्न। जीवन-प्रबन्धन जीवन जीने की सम्यक दिशा का बोध कराकर, उसे जीवन में जीने की एक कला के रूप में ही हमारे समक्ष लाता है। यह सिद्धान्त और व्यवहार दोनों ही है, इसीलिए प्रस्तुत शोध-प्रबन्ध में हमने जीवन-प्रबन्धन के सैद्धान्तिक और प्रायोगिक दोनों ही पक्षों की चर्चा की, लेकिन इस चर्चा में हमारा आधार जैन जीवन-दृष्टि रहा है। .
जीवन जीना सभी चाहते हैं, किन्तु जीवन को सम्यक् प्रकार से कैसे जिया जाए? यह विचार विरलों में ही होता है। पशु अपनी प्रकृति के अनुरूप जीवन जीता है, किन्तु मनुष्य अपनी प्रकृति से भिन्न होकर भी जीवन जी सकता है। जैसा कि हमने पूर्व में इंगित किया है, मानव-जीवन के दो नियामक तत्त्व हैं - वासना और विवेक। दोनों का सम्यक् समन्वय जीवन-प्रबन्धन है और किसी भी एक पक्ष की ओर अतिवादिता, यह जीवन की उच्छृखलता का ही एक रूप है, अतः जीवन-प्रबन्धन से हमारा तात्पर्य यही है कि जीवन के विविध आयामों को एक विवेकपूर्ण दृष्टि प्रदान की जाए।
यद्यपि आज जीवन-प्रबन्धन एक आवश्यकता बन गया है. किन्त यह आवश्यक इसीलिए है कि 745
अध्याय 14 : जीवन-प्रबन्धन : एक सारांश
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