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चर्चा की गई है और उन्हीं आयामों पर आधारित प्रस्तुत शोध-प्रबन्ध के विभिन्न अध्यायों का उपसंहार किया गया है। अन्त में यही दिखाने का प्रयास किया गया है कि भौतिक और आर्थिक विकास यद्यपि जीवन जीने के लिए आवश्यक हैं, फिर भी उनका सम्यक् प्रबन्धन तो नैतिक, धार्मिक तथा आध्यात्मिक जीवन-मूल्यों पर ही आधारित होगा। जीवन जीने के विभिन्न स्तर हैं, हम उनमें से किसी की भी पूर्ण उपेक्षा तो नहीं कर सकते, किन्तु उनकी नियंत्रक-शक्ति को कहीं न कहीं नैतिक, धार्मिक और आध्यात्मिक जीवन-मूल्यों पर आधारित बनाना होगा। इससे ही व्यक्ति के जीवन का सम्यक् प्रबन्धन सम्भव होगा और तभी वह अपने जीवन में आध्यात्मिक शिखर पर आरूढ़ हो सकेगा।
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जीवन-प्रबन्धन के तत्त्व
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