Book Title: Jain Achar Mimansa me Jivan Prabandhan ke Tattva
Author(s): Manishsagar
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 860
________________ सम्यक् प्रबन्धन करने हेतु कौन-कौन से सूत्र दिए गए हैं। यह सत्य है कि मानव-जीवन में यदि व्यक्ति को अभिव्यक्ति का अवसर ही ना मिले, तो वह तनावग्रस्त हो जाता है, किन्तु वह अभिव्यक्ति चाहे सांकेतिक हो या भाषिक, यदि सम्यक् रूप से प्रयुक्त नहीं की जाती है, तो मानव जाति को विकास के स्थान पर पतन की ओर ले जाती है। जैनचिन्तकों ने भी यह बताया है कि द्रौपदी की असंयमित भाषिक-अभिव्यक्ति ने महाभारत जैसे युद्ध को जन्म दिया। जैनआगमों विशेष रूप से आचारांग और दशवैकालिक में इस बात पर बहुत बल दिया गया है कि साधक को अपनी भाषिक-अभिव्यक्ति के सन्दर्भ में कितना सजग रहना चाहिए। वाणी का कुप्रबन्धन किस प्रकार के अनर्थों को जन्म देता है, यह चर्चा भी प्रस्तुत अध्याय में जैनआचारमीमांसा के आधार पर की गई है और यह बताया गया है कि भाषिक-अभिव्यक्ति का सम्यक् प्रयोग मनुष्य को किस प्रकार से करना चाहिए और इस सन्दर्भ में हमने जैनग्रन्थों के आधार पर भाषिक-अभिव्यक्ति की एक आदर्श नियमावली (Model) भी प्रस्तुत की है। प्रस्तुत शोध-प्रबन्ध का सप्तम अध्याय तनाव एवं मानसिक विकारों के प्रबन्धन से सम्बन्धित है। आज यह एक सुस्पष्ट तथ्य है कि समग्र मानवता तनावग्रस्त है और यह भी सत्य है कि वह तनाव से मुक्ति चाहती है, किन्तु तनाव से मुक्ति के सम्यक् मार्ग के अवलम्बन से आज वह वंचित है। यह एक सत्य है कि तनाव एवं मानसिक विकार की जन्मभूमि मानव-मन ही है। अतः इस अध्याय में सर्वप्रथम भारतीय-दर्शन और विशेष रूप से जैनदर्शन में मन का क्या स्वरूप है, इसे विस्तार से बताया गया है। साथ ही यह भी स्पष्ट किया गया है कि जीवन को सम्यक् प्रकार से जीने में मन का कितना महत्त्वपूर्ण स्थान है। आचारमीमांसा और विशेष रूप से जैनआचारमीमांसा की दृष्टि से मन को ही बन्धन और मुक्ति का आधार माना गया है। मणसा उवेति विसए, मणसेव य सन्नियत्तए तेसु। इति वि हु अज्झत्थसमो, बंधो विसया न उ पमाणं ।। इस प्रकार, हमने जीवन व्यवहार एवं साधना में मन के महत्त्व को स्पष्ट करते हुए यह बताया है कि मन का सम्यक् प्रबन्धन न होने से ही विविध मानसिक विकारों विशेष रूप से तनाव, अवसाद आदि मनोरोगों का जन्म होता है और व्यक्ति को इनके दुष्परिणामों को भोगना पड़ता है। प्रस्तुत अध्याय में प्रसंगानुरूप मनोविकारों के बहिरंग एवं अंतरंग कारणों की विस्तार से चर्चा तथा समीक्षा की गई है और यह बताया गया है कि तनाव भी एक मनोविकार ही है। तनाव को स्पष्ट करने की दृष्टि से आगे हमने यह लिखा है कि तनाव का स्वरूप क्या है, यह कहाँ और क्यों उत्पन्न होता है और इससे मुक्ति कैसे प्राप्त की जा सकती है, इसकी चर्चा हमने जैनआचारमीमांसा के परिप्रेक्ष्य में मन-प्रबन्धन को लेकर की है और यह बताया है कि मन–प्रबन्धन का एक सम्यक् आदर्श (Model) क्या और किस रूप में हो सकता है। इस प्रकार, यह अध्याय न केवल तनाव और मानसिक विकारों की चर्चा करता है, अपितु उनसे विमुक्ति किस प्रकार सम्भव है, इसकी भी चर्चा करता है। वस्तुतः, आज धर्म जीवन-प्रबन्धन के तत्त्व 752 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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