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इस प्रकार, सम्पूर्ण पर्यावरण-प्रबन्धन के आशय को स्पष्ट करने के लिए बृहद्कल्पभाष्य की निम्नलिखित पंक्तियाँ पर्याप्त है42 -
जं इच्छसि अप्पणतो, जं च न इच्छसि अप्पणतो।
तं इच्छ परस्स वि, एत्तियगं जिणसासणयं ।। अर्थात् जो अपने लिए चाहते हो, वही दूसरों के लिए भी चाहना चाहिए, जो अपने लिए नहीं चाहते हो, वह दूसरों के लिए भी नहीं चाहना चाहिए। बस! इतना मात्र जिनशासन है और यही तीर्थंकरों का उपदेश भी।
इस प्रकार, पर्यावरण का सम्यक् प्रबन्धन कर पर्यावरणीय संसाधनों की सुरक्षा का प्रयत्न करना चाहिए।
शिवमस्तु सर्वजगतः, परहितनिरता भवन्तु भूतगणाः। दोषाः प्रयान्तु नाशं, सर्वत्र सुखी भवन्तु लोकाः।। 243
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अध्याय 8 : पर्यावरण-प्रबन्धन
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