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भारत के भूतपूर्व राष्ट्रपति डॉ. अब्दुल कलाम आजाद एक वैज्ञानिक, राजनयिक, समाज-सेवक एवं धार्मिक-समाज से सम्बद्ध व्यक्ति हैं।
चूँकि जीवन-प्रबन्धन का सम्बन्ध व्यक्ति के व्यक्तिगत जीवन से जुड़ा है, अतः सीमित सामाजिक संरचना के आधार पर ही हमें समाज को समझना होगा। इस दृष्टि से, एक व्यक्ति अनेक समूहों, समितियों, संस्थाओं आदि का सदस्य (इकाई) हो सकता है। दूसरे शब्दों में, एक व्यक्ति का सम्बन्ध अनेक छोटे-छोटे समाजों से हो सकता है।
सामाजिक-प्रबन्धन की समग्रता तभी होगी, जब व्यक्ति अपने सम्बद्ध विविध समाजों में उचित सन्तुलन एवं तालमेल स्थापित करे, अन्यथा उसकी प्रगति सन्दिग्ध हो जाएगी, जैसे - एक व्यक्ति परिवार में पति है, तो कार्यालय में चपरासी। यदि वह जैसा व्यवहार पत्नी के साथ करता है, वैसा ही यदि अधिकारी के साथ करेगा, तो उसका कार्यालयीन समाज असन्तुलित हो जाएगा और परोक्ष रूप से कार्यालय का रोष एवं क्षोभ परिवार पर भी आने लगेगा।
किसी भी व्यक्ति का अनेकानेक समाजों के साथ सम्बन्ध हो सकता है, जैसे – पारिवारिक शैक्षणिक, आर्थिक, राजनीतिक, धार्मिक, औद्योगिक, प्रशासनिक इत्यादि। मेरी दृष्टि में, जीवन-प्रबन्धन के सन्दर्भ में इन समस्त समाजों का तीन मुख्य समाजों में अन्तर्भाव हो सकता है -
★ पारिवारिक संस्था (Family Institution) * धार्मिक संस्था (Religious Institution)
★ लौकिक संस्था (Worldly Institution) (1) पारिवारिक संस्था - परिवार समाज की प्रारम्भिक या मूल इकाई है। प्रसिद्ध समाजशास्त्री एण्डरसन के अनुसार – “परिवार का एक रूप वह है, जिसमें हम जन्म लेते हैं और दूसरा रूप वह है, जिसमें हम बच्चों को जन्म देते हैं।"23 बर्जेस एवं लॉक के अनुसार – ‘परिवार व्यक्तियों का समूह है, जो विवाह, रक्त अथवा गोद लेने के सम्बन्धों द्वारा संघटित है, जो एक गहस्थी का निर्माण करते हैं, एक-दूसरे से पति और पत्नी, माता और पिता, पुत्र और पुत्री, भाई और बहन के रूप में अन्तःक्रियाएँ (Interaction) करते हैं और एक समान संस्कृति का सृजन तथा रख-रखाव करते हैं।'
डॉ. मजूमदार के अनुसार – “परिवार ऐसे व्यक्तियों का समूह है, जो एक मकान में रहते हैं, रक्त द्वारा सम्बन्धित हैं तथा स्थान, स्वार्थ और पारस्परिक कर्त्तव्यबोध के आधार पर समान होने की चेतना या भावना रखते हैं।"25 ‘परिवार में रहने की कला' नामक प्रसिद्ध पुस्तक में परिवार को सरलता से परिभाषित करते हुए कहा गया है कि माता-पिता, भाई-बहन, पति-पत्नी, सन्तान, दामाद, पुत्रवधु आदि नजदीक के पारिवारिक सदस्य हैं, तो दादा-दादी, नाना-नानी, मामा-मामी, भतीजा-भतीजी, भानजा-भानजी, चाचा-ताऊ आदि परिजन दूर के पारिवारिक सदस्य हैं। यह कहा जा सकता है कि विवक्षा की भिन्नता होने के बावजूद भी सभी परिभाषाओं का मूल कथ्य प्रायः समान है। 499
अध्याय 9: समाज-प्रबन्धन
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