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जहाँ 'मेरे' और 'तेरे' का घेरा है, वहाँ पर भव-भव का फेरा है।
और जहाँ कोई नहीं, कुछ नहीं का गुंजन है,
वहाँ सुख, शान्ति और आनन्द का मधुबन है। उपर्युक्त सूत्रों को जान लेना ही पर्याप्त नहीं, इन्हें प्रयोग में भी लाना होगा। इन्हें प्रयोग में लाने का अर्थ है, इनके अनुसार वैयक्तिक एवं सामाजिक जीवन-प्रणाली को ढालना। यदि इन सूत्रों के आधार पर हम अपने वैयक्तिक एवं सामाजिक जीवन को सम्यक् प्रकार से नियंत्रित करने में सफल होते हैं, तो ही सामाजिक-प्रबन्धन सम्भव होगा। इसका मतलब यह कतई नहीं है कि इसमें व्यक्ति का लाभ नहीं, केवल समाज का लाभ है, वस्तुतः ये सूत्र जिसके जीवन में उतरेंगे, वह तो व्यक्ति ही है और व्यक्ति समाज का ही एक अंग है।
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जीवन-प्रबन्धन के तत्त्व
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