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अध्याय 13 आध्यात्मिक-विकास-प्रबन्धन (Spiritual Development Management)
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13.1 आध्यात्मिक विकास का स्वरूप 13.2 आध्यात्मिक जीवन में साधक, साधन और साध्य की एकरूपता 13.3 जैनधर्म में आध्यात्मिक जीवन के विविध स्तर 13.4 आध्यात्मिक साधना में आई विसंगतियाँ एवं बाधाएँ 13.5 जैनधर्म और आचारशास्त्र के आधार पर आध्यात्मिक-जीवन-प्रबन्धन 13.5.1 आध्यात्मिक-जीवन-प्रबन्धन का सैद्धान्तिक-पक्ष
(1) आध्यात्मिक-विकास-प्रबन्धन की मूल अवधारणा (2) मोक्ष का स्वरूप (3) मोक्ष में ही परम सुख (4) मोक्ष का मार्ग (5) सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान एवं सम्यक्चारित्र का स्वरूप (6) जैनदृष्टि के आधार पर विश्व-व्यवस्था
(7) नवतत्त्वों का विषय, जैनदृष्टि का आधार 13.6 आध्यात्मिक-विकास-प्रबन्धन का प्रायोगिक-पक्ष 13.6.1 सम्यग्दर्शन एवं सम्यग्ज्ञान की प्राप्ति का अभ्यास-क्रम
(1) प्राथमिक भूमिका का निर्माण करना (2) सम्यक्त्व-सम्मुखता (3) सम्यग्दर्शन के लिए तीव्र प्रयत्न करना
(4) सम्यग्दर्शन की प्राप्ति का लक्ष्यभेदी प्रयत्न करना 13.6.2 सम्यक्चारित्र के विकास का अभ्यास-क्रम
(1) प्राथमिक भूमिका का निर्माण करना (2) अनन्तानुबन्धी कषाय से निवृत्त होना (3) अप्रत्याख्यानीकषाय से निवृत्त होना (4) प्रत्याखानी कषाय से निवृत्त होना (5) तीव्र संज्वलन कषाय से निवृत्त होना
(6) मन्द संज्वलन कषाय से निवृत्त होना 13.7 निष्कर्ष 13.8 स्वमूल्यांकन एवं प्रश्नसूची (Self Assessment: A questionnaire)
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