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________________ अध्याय 13 आध्यात्मिक-विकास-प्रबन्धन (Spiritual Development Management) Page No. Chap. Cont. 1 702 707 697 715 722 722 722 723 723 725 726 728 732 735 13.1 आध्यात्मिक विकास का स्वरूप 13.2 आध्यात्मिक जीवन में साधक, साधन और साध्य की एकरूपता 13.3 जैनधर्म में आध्यात्मिक जीवन के विविध स्तर 13.4 आध्यात्मिक साधना में आई विसंगतियाँ एवं बाधाएँ 13.5 जैनधर्म और आचारशास्त्र के आधार पर आध्यात्मिक-जीवन-प्रबन्धन 13.5.1 आध्यात्मिक-जीवन-प्रबन्धन का सैद्धान्तिक-पक्ष (1) आध्यात्मिक-विकास-प्रबन्धन की मूल अवधारणा (2) मोक्ष का स्वरूप (3) मोक्ष में ही परम सुख (4) मोक्ष का मार्ग (5) सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान एवं सम्यक्चारित्र का स्वरूप (6) जैनदृष्टि के आधार पर विश्व-व्यवस्था (7) नवतत्त्वों का विषय, जैनदृष्टि का आधार 13.6 आध्यात्मिक-विकास-प्रबन्धन का प्रायोगिक-पक्ष 13.6.1 सम्यग्दर्शन एवं सम्यग्ज्ञान की प्राप्ति का अभ्यास-क्रम (1) प्राथमिक भूमिका का निर्माण करना (2) सम्यक्त्व-सम्मुखता (3) सम्यग्दर्शन के लिए तीव्र प्रयत्न करना (4) सम्यग्दर्शन की प्राप्ति का लक्ष्यभेदी प्रयत्न करना 13.6.2 सम्यक्चारित्र के विकास का अभ्यास-क्रम (1) प्राथमिक भूमिका का निर्माण करना (2) अनन्तानुबन्धी कषाय से निवृत्त होना (3) अप्रत्याख्यानीकषाय से निवृत्त होना (4) प्रत्याखानी कषाय से निवृत्त होना (5) तीव्र संज्वलन कषाय से निवृत्त होना (6) मन्द संज्वलन कषाय से निवृत्त होना 13.7 निष्कर्ष 13.8 स्वमूल्यांकन एवं प्रश्नसूची (Self Assessment: A questionnaire) सन्दर्भसूची 735 735 736 736 737 737 737 738 738 738 739 739 740 741 742 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003975
Book TitleJain Achar Mimansa me Jivan Prabandhan ke Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManishsagar
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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