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13.3.6 षष्ठम वर्गीकरण : गुणस्थानों के आधार पर
वर्तमान में जैन-परम्परा में आध्यात्मिक विकास का जो वर्गीकरण मुख्य रूप से प्रचलित है, वह गुणस्थान सिद्धान्त पर आधारित है। यह सिद्धान्त आध्यात्मिक-विकास की यात्रा में आत्मा की क्रमिक प्रगति का ज्ञान कराता है। जिस प्रकार सीढ़ी-दर-सीढ़ी चढ़ता हुआ व्यक्ति इमारत की एक मंजिल से दूसरी मंजिल पर पहुँच जाता है अथवा मार्ग में मील के पत्थरों को पीछे छोड़ता हुआ यात्री अपने गन्तव्य तक पहुँच जाता है, वैसे ही आध्यात्मिक विकास के चौदह सोपानों पर चढ़ता हुआ साधक मोक्षसाध्य पर पहुँच जाता है। ये चौदह सोपान ही गुणस्थान सिद्धान्त के प्रतिपाद्य विषय हैं।
_ 'गुणस्थान' शब्द गुण एवं स्थान शब्द से बना है, जिसमें 'गुण' आत्मा की ज्ञानादि शक्तियों का और 'स्थान' उनकी अवस्था का द्योतक है। कर्मस्तववृत्ति में इसे परिभाषित करते हुए कहा गया है कि आत्मा के जो ज्ञान, दर्शन एवं चारित्र गुण हैं, उनकी शुद्ध-अशुद्ध तरतमता रूप अवस्थाओं को गुणस्थान कहते हैं।' आचार्य नेमिचन्द्र के अनुसार, मोह और योग के निमित्त से आत्मा के श्रद्धा (दर्शन) और चारित्र गुण की तरतमतायुक्त अवस्था को गुणस्थान कहते हैं। ये गुणस्थान इस प्रकार हैं - 1) मिथ्यादृष्टि
8) अपूर्वकरण (निवृत्ति बादर) 2) सासादन
9) अनिवृत्ति बादर 3) सम्यमिथ्यादृष्टि (मिश्र)
10) सूक्ष्म सम्पराय 4) अविरत सम्यग्दृष्टि
11) उपशान्त-मोह छद्मस्थ वीतराग 5) देशविरत सम्यग्दृष्टि
12) क्षीण-मोह छद्मस्थ वीतराग 6) प्रमत्त-संयत
13) सयोगी केवली 7) अप्रमत्त-संयत
14) अयोगी केवली (1) मिथ्यादृष्टि गुणस्थान - यह आत्मा की निकृष्टतम अवस्था है। इसमें शरीर के प्रति अहं-बुद्धि , परिवार के प्रति मम-बुद्धि , इष्ट संयोगों के प्रति सुख-बुद्धि एवं साता-सम्मान के प्रति उपादेय-बुद्धि बनी रहती है। 14 साथ ही जीव को कर्त्तव्य-अकर्तव्य, श्रेय-अश्रेय, पुण्य-पाप, तत्त्व-अतत्त्व, धर्म-अधर्म के यथार्थ स्वरूप का निश्चय नहीं हो पाता। (2) सासादन गुणस्थान – यह गुणस्थान क्रम की अपेक्षा से द्वितीय है, किन्तु इसका स्पर्श चतुर्थ गुणस्थान से पतित आत्मा करती है। उपशम सम्यक्त्व (सम्यग्दर्शन का एक प्रकार) की दशा में स्थित आत्मा में जब अनन्तानुबन्धी कषाय का उदय होता है, तब आत्मा मिथ्यात्वाभिमुख हो जाती है और उसी समय में सासादन गुणस्थान की प्राप्ति होती है। इसका काल अधिकतम छह आवलिका (काल की सूक्ष्म इकाई) होता है। (3) सम्यक्-मिथ्या-दृष्टि (मिश्र) गुणस्थान – यह सम्यक्त्व एवं मिथ्यात्व की मिश्रित अवस्था 16 जीवन-प्रबन्धन के तत्त्व
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