________________
जो प्रवृत्ति मिथ्याज्ञान की हेतु होती है, वही कहीं न कहीं मिथ्यादर्शन एवं मिथ्याचारित्र की पोषक भी होती है, इसी प्रकार मिथ्यादर्शन और मिथ्याचारित्र की प्रवृत्तियों को भी जानना चाहिए। अतः यह आवश्यक हो जाता है कि व्यक्ति इन तीनों विसंगतियों का त्याग करे और सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान एवं सम्यक्चारित्र का उपाय कर आध्यात्मिक साधना के मार्ग में अग्रसर हो।
=====<
=====
721
अध्याय 13: आध्यात्मिक-विकास-प्रबन्धन
25
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org