________________
★ मार्गानुसारी के गुणों का पालन करना106 - 1) न्यायपूर्वक धन-वैभव उपार्जित करना। 2) शिष्टाचार (उत्तम आचरण) का प्रशंसक होना। 3) समान कुल-शील वाले , किन्तु अन्य गोत्रीय के साथ विवाह करना। 4) पापभीरू होना। 5) प्रसिद्ध देशाचार का पालन करना। 6) किसी का भी अवर्णवाद (निन्दा) नहीं करना। 7) घर का न अतिगुप्त होना और न अतिप्रकट होना। 8) मकान में आने-जाने के अनेक द्वार नहीं होना। 9) सदाचारी का सत्संग करना। 10) माता-पिता की सेवा करना। 11) उपद्रव वाले स्थान को छोड़ देना। 12) निन्दनीय कार्य नहीं करना। 13) आय के अनुसार व्यय करना। 14) आय के अनुसार पोशाक धारण करना। 15) बुद्धि के आठ गुणों से युक्त होकर हमेशा धर्मश्रवण करना। 16) अजीर्ण के समय भोजन का त्याग करना। 17) नियमित समय पर सन्तोषपूर्वक भोजन करना। 18) धर्म, अर्थ और काम – तीनों वर्गों में परस्पर समन्वय करना। 19) अपनी शक्ति के अनुसार अतिथि, साधु एवं दीन-दुःखियों की सेवा करना। 20) मिथ्या-आग्रह से सदा दूर रहना। 21) गुणानुरागी होना। 22) निषिद्ध देशाचार एवं निषिद्ध कालाचार का त्याग करना। 23) बलाबल का सम्यक् ज्ञाता होना। 24) व्रत-नियम में स्थिर ज्ञानवृद्धों की सेवा करना। 25) आश्रितों का पालन-पोषण करना। 26) दीर्घदर्शी होना। 27) विशेषज्ञ होना। 28) कृतज्ञ होना। 29) लोकप्रिय होना। 30) लज्जावान् होना। 31) दयालु होना।
687
अध्याय 12 : धार्मिक-व्यवहार-प्रबन्धन
35
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org