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10.1 अर्थ की परिभाषा एवं अवधारणा
10. 2 जीवन में अर्थ का महत्त्व एवं स्थान
10.3 जैन जीवनदृष्टि में अर्थ का महत्त्व
10.4 असन्तुलित अमर्यादित एवं अव्यवस्थित अर्थनीति के दुष्परिणाम
10.5 जैनआचारमीमांसा के आधार पर अर्थ- प्रबन्धन
10.6 जैनआचारमीमांसा के आधार पर अर्थ-प्रबन्धन का प्रायोगिक पक्ष
10.6.1 परिग्रह एवं उसकी अवधारणा
10.6.2 परिग्रह के भेद
10.6.3 अंतरंग एवं बहिरंग परिग्रह का सहसम्बन्ध
10.6.4 अंतरंग - परिग्रह की प्रधानता
10.6.5 अंतरंग परिग्रह के मूल कारण
10.6.6 परिग्रह प्रबन्धन इच्छाओं का प्रबन्धन
10.6.7 परिग्रह का सीमाकरण परिग्रह-परिमाण व्रत
10.6.8 अर्थ - प्रबन्धन की प्रक्रिया
:
अध्याय 10
अर्थ-प्रबन्धन
(Wealth Management )
(1) आवश्यकताओं का सम्यक् निर्धारण
(2) आवश्यकताओं की पूर्ति का सम्यक् प्रयत्न
(क) साधनों के प्रयोग में सावधानियाँ
(ख) आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए उचित प्रक्रियाएँ
1) ग्रहण - प्रबन्धन
2) सुरक्षा - प्रबन्धन
3) उपभोग-प्रबन्धन
4) संग्रह-प्रबन्धन
(ग) अर्थ- प्रबन्धन का विकास क्रम
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10.7 निष्कर्ष
10.8 स्वमूल्यांकन एवं प्रश्नसूची (Self Assessment: A questionnaire )
सन्दर्भसूची
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Page No. Chap. Cont.
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