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अध्याय 10
अर्थ-प्रबन्धन (Wealth Management)
10.1 अर्थ की परिभाषा एवं अवधारणा
भारतीय वाङ्मय में 'अर्थ' एक ऐसा बहुप्रचलित शब्द है, जिसके भिन्न-भिन्न प्रसंगों में भिन्न-भिन्न आशय होते हैं। संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश में 'अर्थ' के अनेक अर्थों का उल्लेख मिलता है, जैसे - अभिधेय (Meaning), प्रयोजन (Objective), कारण या हेतु (Means), धन-सम्पति (Wealth), वस्तु (Goods) इत्यादि।' चूँकि प्रस्तुत अध्याय का सम्बन्ध अर्थशास्त्र से है, अतः 'अर्थ' की सम्यक् परिभाषा के निर्धारण के पूर्व विविध अर्थशास्त्रों में निहित 'अर्थ' शब्द का तात्पर्य जानना अत्यावश्यक है। 10.1.1 अर्थशास्त्र की दृष्टि में अर्थ (1) आचार्य चाणक्य प्रणीत कौटिलीय अर्थशास्त्र के अनुसार, मनुष्यों के जीवन-यापन के साधनों सहित वह भूमि भी 'अर्थ' है, जहाँ मनुष्य रहते हैं।' (2) आधुनिक अर्थशास्त्र के जनक सर एडम स्मिथ (1723-1790) के अनुसार, 'अर्थ' का आशय धन-सम्पत्ति (Wealth) से है। (3) सुप्रसिद्ध अर्थशास्त्री प्रो. अल्फ्रेड मार्शल (1890) का कथन है कि वह प्रत्येक वस्तु 'अर्थ' है, जिससे व्यक्ति का भौतिक-कल्याण (Physical Welfare) होता है।' (4) सुविख्यात अर्थशास्त्री प्रो. रॉबिन्स (1932) ने अपेक्षाकृत व्यापक एवं तर्कसंगत दृष्टिकोण प्रस्तुत करते हुए कहा है कि वह प्रत्येक मानवीय व्यवहार (Human Behaviour) 'अर्थ' है, जिसकी बाजार में माँग (Demand) है। इस परिभाषा के आधार पर निम्न सभी मानवीय व्यवहारों का समावेश 'अर्थ' के रूप में हो जाता है - ★ भौतिक या अभौतिक दोनों ही व्यवहार (कार्य) 'अर्थ' हैं। उदाहरणार्थ, डॉक्टर, वकील, सी.ए.,
शिक्षक , सलाहकार आदि की सेवाएँ अभौतिक होते हुए भी 'अर्थ' हैं। * आर्थिक (Monetary) एवं अनार्थिक (Non-monetary) दोनों ही व्यवहार 'अर्थ' हैं।
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अध्याय 10 : अर्थ-प्रबन्धन
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