Book Title: Jain Achar Mimansa me Jivan Prabandhan ke Tattva
Author(s): Manishsagar
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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103 कहीं रुको कभी रुको, आ.रत्नसुंदरसूरि, पृ. 3.4
130 कत्तारमेव अणुजाइ कम्मं - उत्तराध्ययनसूत्र, 13/23 104 पुरः पुरः स्फुरत्तृष्णा, मृगतृष्णानुकारिषु। 131 जं इच्छसि अप्पणतो, जंच न इच्छसि अप्पणतो।
इन्द्रियार्थेषु धावन्ति, त्यक्त्वा ज्ञानामृतं जड़ाः ।। तं इच्छ परस्सवि, एत्तियगं जिणसासणयं ।। - ज्ञानसार, 7/6
- बृहद्भाष्य, 4584 105 कहीं रुको कभी रुको, आ.रत्नसुदरसूरि, पृ. 65
132 युवादृष्टि (पत्रिका), अप्रैल 2009, अर्थ समस्या भी है 106 महावीर का अर्थशास्त्र, आ.महाप्रज्ञ, पृ. 42
समाधान भी, पृ. 7 107 वही, पृ. 32
133 उपदेशप्रासाद, 2/79, पृ. 80 108 (क) देखें, गरीबी रेखा के ऊपर और नीचे, राष्ट्रीय सहारा, 134 महावीर का अर्थशास्त्र, आ.महाप्रज्ञ, पृ. 16-17 दिल्ली, 21 अक्टूबर, 1999, पृ. 6
135 वही, पृ. 17 (ख) गरीबी का दुश्चक्र, दैनिक जागरण, मेरठ, 16 मई, 136 अमोलसूक्तिरत्नाकर कल्याणऋषि, पृ. 389 2005, पृ. 12
137 महावीर का अर्थशास्त्र, आ.महाप्रज्ञ अ. 1 109 हमलोग (पत्रिका), 8 जनवरी, 2009
138 भारतीय जीवन मूल्य, डॉ.सुरेन्द्र वर्मा, पृ. 57 110 वही, 8 जनवरी, 2009
139 आचारांगसूत्र 1/2/3/4 111 युवादृष्टि (पत्रिका), अप्रैल, 2010, सापेक्ष अर्थशास्त्र-मानवीय 140 ज्ञानसार, 12/8 दृष्टिकोण, पृ. 24
141 स्वप्नलब्ध धन विभ्रमं धनं 112 महावीर का अर्थशास्त्र, आ.महाप्रज्ञ, पृ. 33
- धर्मबिन्दु, 3/78, पृ. 173 113 अंगाणं किं सारो? आयारो !
142 उत्तराध्ययनसूत्र, 23/48 - आचारांगनियुक्ति, गा.16
143 आसं च छंदं च विगिं च धीरे। 114 आचारः प्रथमो धर्मः - मनुस्मृति, 1/207
- आचारांगसूत्र, 1/2/4/3 115 वित्तीय प्रबन्ध, डॉ.एस.पी.गुप्ता, अ.59, पृ. 495
144 अतिरेगं अहिगरणं - ओघनियुक्ति, 741 116 युवादृष्टि (पत्रिका), अप्रैल, 2010, अर्थ समस्या भी है 145 आतुरा परिताउति – आचारांगसूत्र 1/1/6/4 समाधान भी, पृ. 7
146 अर्थानामर्जने दुःख, अर्जितानां च रक्षणे। 117 वही, पृ. 6
आयेदुःखं व्यये दुःखं, धिगर्थ दुःखकारणम्।। 118 कहीं रुको कभी रुको, आ.रत्नसुन्दरसूरि, पृ. 79
- स्थानांगसूत्रसटीक 119 अयं निजः परोवेति. गणनालघुन्चेतसां। (अभिधानराजेन्द्रकोष, 1/506 से उद्धृत)
उदारचरितानां तु, वसुधैव कुटुम्बकम।। 147 लोभ कलि-कसाय महक्खधो चिंतासयनिचिय विपुलसालो। - पुष्पपराग, मुनिजयानंदविजय, 6124
- प्रश्नव्याकरणसूत्र 1/5 120 तत्त्वार्थसूत्र, 7/6
148 तित्तीए असंतीए हाहाभूदस्स धण्णचित्तस्स । 121 उत्तराध्ययनसूत्र, 9/48
किं तत्थ होज्ज सुक्खं सदावि पंपाए गहिदस्स ।। 122 युवादृष्टि (पत्रिका), अप्रैल, 2010, अर्थ समस्या भी है
- भगवतीआराधना, 1139 समाधान भी, पृ. 7
149 परिसामस्त्येन ग्रहणं परिग्रहणं...मूर्छावशेन परिग्रह्यते 123 वही, पृ. 7
आत्मभावेन ममेति बुद्धया गृह्यते इति 124 वही, पृ. 7
परिग्रहः – प्रश्नव्याकरणवृत्ति, 215 125 वही, पृ. 7
(जैनआचार, देवेन्द्रमुनि, पृ. 853 से उद्धृत) 126 सत्यमेव जयते नानृतम्
150 (क) मूर्छा परिग्रहः - तत्त्वार्थसूत्र, 7/12 - अमोलसुक्तिरत्नाकर, कल्याणऋषि, पृ. 98
(ख) न सो परिग्गहो वुत्तो, नायपुत्तेण ताइणा। 127 पातयति आत्मानं इति पापम्
मुच्छा परिग्गहो वुत्तो, इइ वुत्तं महेसिणा।। - उत्तराध्ययनचूर्णि, 2
- दशवैकालिकसूत्र, 6/20 (जैनआचार, पृ. 242 से उद्धृत)
151 अगारधर्म, पृ. 63 128 जीवा वि पाणतिवायण जाव मिच्छादसणं सल्लेणं अणुपुव्वेणं 152 गंथोऽगंथो व मओ मुच्छाहि निच्छयंओ - ज्ञाताधर्मकथा, 1/6/4
- विशेषावश्यकभाष्य, 2573 129 तत्त्वार्थसूत्र, 8/16
153 प्रश्नव्याकरणसूत्र, 1/5, पृ. 145 जीवन-प्रबन्धन के तत्त्व
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