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काम (भोग) स्वीकृत भी किए गए हैं, परन्तु अमर्यादित काम (भोग) तो सर्वथा अनाचरणीय ही हैं। उदाहरणस्वरूप, मनुष्य में संज्ञा (Instincts) के रूप में काम-वासना का तत्त्व तो होता ही है। प्रथमतया तो उस पर विजय पाना चाहिए (साध्य की दृष्टि से)। फिर भी, यदि सम्भव न हो, तो विवाह-संस्था द्वारा उसे मर्यादित किया जाना चाहिए (साधना की भूमिका में)। किन्तु, अमर्यादित काम-भोगों का तो सर्वथा निषेध करना चाहिए, क्योंकि वे सम्पूर्ण समाज-व्यवस्था को दूषित कर देते
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जीवन-प्रबन्धन के तत्त्व
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