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ii) जिनके मिलने पर कार्यक्षमता में वृद्धि भी नहीं होती और न मिलने पर हानि भी नहीं
होती, किन्तु शराब आदि हानिकारक विलासिताओं के मिलने पर हानि और न मिलने पर
अप्रत्यक्ष लाभ होता है। iii) जिनका उपभोग करने पर बहुत अधिक आनन्द की प्राप्ति का आभास (भ्रम) होता है और ___ न मिलने पर बहुत थोड़ा दुःख होता है।
iv) जैसे – कीमती आभूषण, शानदार बंगला, मादक द्रव्य आदि। 5) अनुपयोगी वस्तुएँ – ये वे वस्तुएँ हैं –
i) जो जीवन-व्यवहार में अकारण/अविचारपूर्वक उपयोग में आ रही हैं। ii) जिनकी जीवन-अस्तित्व के लिए कोई उपयोगिता नहीं होती। iii) जिनके मिलने और न मिलने से कार्यक्षमता में किंचित् भी परिवर्तन नहीं आता। iv) जिनका उपभोग करने और न करने से कोई सुख-दुःख की प्राप्ति नहीं होती।
v) जैसे – अन्ध व्यक्ति के लिए दर्पण, अनपढ़ के लिए कम्प्यूटर आदि। (आधुनिक अर्थशास्त्री भी भोगोपभोग की विविध वस्तुओं का अनिवार्य , सुविधा तथा विलासिता - इन तीन श्रेणियों में विभाजन करते हैं।99)
स्मरण रहे कि भोगोपभोग का उपर्युक्त वर्गीकरण सापेक्ष है, निरपेक्ष नहीं। अभिप्राय यह है कि जो वस्तु एक व्यक्ति के लिए अनिवार्य है, दूसरे के लिए वही सुविधा और तीसरे के लिए विलासिता या अन्य हो सकती है। देश, काल एवं परिस्थिति में परिवर्तन के आधार पर एक ही व्यक्ति के लिए एक ही वस्तु कभी अनिवार्य हो जाती है, तो कभी सुविधा और कभी प्रतिष्ठादि, जैसे-शुगर की बीमारी के पूर्व मिष्ठान्न आदि अनिवार्य हो सकते हैं, किन्तु बाद में अनुपयोगी। प्रशमरतिग्रंथ में भी कहा गया है कि कोई भी वस्तु सर्वथा कल्प्य (प्रयोज्य) नहीं होती, अपितु देश, काल, क्षेत्र, पुरूष, अवस्था, उपघात
और शुद्ध परिणामों का विचार करके कल्प्य (प्रयोज्य) होती है।100 अतः भोगोपभोग-प्रबन्धन का लक्ष्य है कि जीवन-प्रबन्धक सम्यग्ज्ञान को आधार बनाकर उचित विश्लेषण करे और अपनी शक्ति-अनुसार विलासितादि अनावश्यकताओं का सीमांकन करे। (ग) नैतिक, आध्यात्मिक एवं जैविक मूल्यों के आधार पर - आवश्यकताओं का यह तीसरा, किन्तु अत्यन्त महत्त्वपूर्ण वर्गीकरण है। इसमें नैतिक एवं आध्यात्मिक मूल्यों के आधार पर हम भोगोपभोग की वस्तुओं का विभाजन करते हैं। ये मूल्य इस प्रकार हैं - 1) हिंसादि पापों की तरतमता के आधार पर विभाजन। 2) अंतरंग भावों या परिणामों (राग-द्वेषादि) की तरतमता के आधार पर विभाजन। 3) आदतों (Habits/संस्कारों) में होने वाले बिगाड़ की तरतमता के आधार पर विभाजन । 4) समय के अपव्यय की तरतमता के आधार पर विभाजन। 5) धन और श्रम के अपव्यय की तरतमता के आधार पर विभाजन। 639
अध्याय 11 : भोगोपभोग-प्रबन्धन
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