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किलोमीटर पैदल जाना भी एक गम्भीर समस्या बन जाती है ।
2) व्यक्ति की स्फूर्ति एवं चुस्ती धीरे-धीरे कम होती जाती है, जैसे- रिमोट कंट्रोल का प्रयोग करने वाला व्यक्ति सामान्यतः उठने-बैठने की क्रिया में भी असहज हो जाता है ।
3) व्यक्ति के लिए प्रतिकूल प्राकृतिक परिवर्तनों को सह पाना बहुत मुश्किल हो जाता है, जैसे वातानुकूलित कार का प्रयोग करने वाले को धूप में पैदल चलना भी कष्टकारी लगता है। 4) अनेक प्रकार के शारीरिक रोग, जैसे मोटापा, मधुमेह आदि उन व्यक्तियों में अधिक पा जाते हैं, जो परावलम्बी एवं विलासिताभोगी होते हैं।
(10) अनावश्यक अपव्यय उपभोक्तावाद बचत के बजाय खर्चे की आदत को ही प्रोत्साहित करता है और उसी को राष्ट्रीय - प्रगति का मापदण्ड भी मानता है, किन्तु नैतिक एवं आध्यात्मिक मूल्यों के आधार पर देखें, तो उपभोगों में किया जाने वाला अनावश्यक अपव्यय अनुचित है। जो व्यक्ति अनुचित अपव्यय करता है, उसे अपने स्टेटस को बनाए रखने एवं बढ़ाने के लिए उतनी ही अधिक अर्थोपार्जन सम्बन्धी क्रियाएँ भी करनी पड़ती हैं। इतना ही नहीं, इन क्रियाओं को करते हुए उसे हिंसा, झूठ, चोरी आदि अठारह पापस्थानकों का सेवन भी करना पड़ता है। साथ ही अधिक आकुलता, व्याकुलता एवं तनावभरा जीवन भी जीना पड़ता है। वस्तुतः, अनावश्यक उपभोग केवल अर्थ का ही अपव्यय नहीं करता, अपितु जैनदृष्टि से देखें, तो नैतिक-आध्यात्मिक मूल्यों तथा पूर्वसंचित पुण्य कर्मों का भी अपव्यय करता है।
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स्पष्ट है कि जीवन में अविवेकपूर्ण ढंग से भोगोपभोग हेतु प्रेरित करने वाली उपभोक्ता - संस्कृति व्यक्ति और समाज दोनों के लिए घातक है। इससे नैतिक एवं आध्यात्मिक मूल्य नष्टप्रायः हो जाते हैं और व्यक्ति केवल भौतिकवादी दृष्टिकोण पर आधारित जीवनशैली अपना लेता है। इससे उसे और समाज को गम्भीर समस्याओं का सामना करना पड़ता है, अतः भोगोपभोग का सम्यक् प्रबन्धन करके मर्यादित एवं नियंत्रित भोगोपभोग करना ही जीवन का लक्ष्य होना चाहिए। कहा भी गया है.
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विषय भोग सब हीन हैं, करो न इनमें वास । 'साधक' यों बच जाएगा, जीवन धन का नाश ।।
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अर्थात् जो विवेकी पुरूष होते हैं, वे भोगों को भोगने के पश्चात् (समझ आने पर ) उन्हें छोड़ देते हैं और प्रसन्नतापूर्वक विचरण करते हैं ।
भोगे भोच्चा वमित्ता य
लहुभूयविहारिणो । आमोयमाणा गच्छन्ति दिया कामकमा इव ।।
प्रथमतः, जीवन जीने के लिए आवश्यक सामग्रियों को छोड़कर शेष भोग-साधनों में निरन्तर कमी करते हुए उनसे ऊपर उठना ही आज एकमात्र विकल्प है।
अध्याय 11 : भोगोपभोग-प्रबन्धन
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