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यहाँ पर यह जानना आवश्यक है कि वस्तुएँ चाहे भोग की हों या उपभोग की, दोनों का मर्यादित उपयोग ही करना चाहिए, अन्यथा अनेक प्रकार की विसंगतियाँ उत्पन्न हो जाती हैं।
जैनाचार्यों ने भोगोपभोग की वस्तुओं को केवल भौतिक मानने वाली दृष्टि को नकारते हुए इन वस्तुओं के पुनः दो भेद किए हैं – भौतिक (अजीव) एवं चैतसिक (सजीव)। उन्होनें इस बात की पुष्टि की है कि यदि पलंग, टेबल आदि निर्जीव पदार्थ भोग की वस्तुएँ हैं, तो नौकर-चाकर, स्त्री-पुरूष, पशु-पक्षी आदि सजीव पदार्थ भी भोग की वस्तुएँ ही हैं। भगवतीसूत्र में इसीलिए कहा गया है - 'जीवा वि भोगा, अजीवा वि भोगा'। अतः भोगोपभोग-प्रबन्धन के अन्तर्गत भौतिक एवं चैतसिक, दोनों प्रकार की वस्तुओं का सीमाकरण करना आवश्यक है। यदि व्यक्ति केवल भौतिक परिग्रह के उपयोग की मर्यादा करके सन्तुष्ट हो जाए और चैतसिक परिग्रह का सीमाकरण न करे, तो भोगोपभोग-प्रबन्धन सन्तुलित नहीं हो सकेगा। 11.1.3 भोगोपभोग के प्रकार : इन्द्रिय-विषयों के आधार पर
इन्द्रिय और मन के अनुकूल स्पर्श, रस, गन्ध, रूप, शब्द एवं भाव रूप विषयों का आसेवन करना भोगोपभोग है, अतः इन विषयों के आधार पर भोगोपभोग के छ: प्रकार हैं - (1) स्पर्श सम्बन्धी भोगोपभोग – व्यक्ति काया (त्वचा) के माध्यम से स्पर्श सम्बन्धी विषयों को ग्रहण करता है। इनमें से कुछ विषय उसे प्रिय लगते हैं, अतः वह उनसे राग करता है, जबकि कुछ अन्य विषय अप्रिय लगने से वह उनसे द्वेष करता है।" जैनाचार्यों ने स्पर्श सम्बन्धी विषयों के मौलिक रूप से आठ भेद किए हैं12 - ★ चिकना ★ ठण्डा ★ हल्का
★ मुलायम ★ खुरदुरा (रुखा) * गरम
★ भारी
★ कठोर (2) स्वाद सम्बन्धी भोगोपभोग - व्यक्ति जिह्वा के माध्यम से स्वाद या रस सम्बन्धी विषयों को ग्रहण करता है। इनमें से कुछ विषयों को अनुकूल मानकर उनसे राग करता है, तो कुछ को प्रतिकूल मानकर द्वेष। ये स्वाद सम्बन्धी विषय पाँच प्रकार के होते हैं -
* तीखा * कड़वा * कसैला * खट्टा ★ मीठा (3) गन्ध सम्बन्धी भोगोपभोग – व्यक्ति नासिका के द्वारा गन्ध विषयक ज्ञान करके सुगन्धयुक्त द्रव्यों से राग और दुर्गन्ध युक्त द्रव्यों से द्वेष करता है। इसके दो भेद होते हैं16 - ★ सुगन्ध
* दुर्गन्ध (4) रूप सम्बन्धी भोगोपभोग – व्यक्ति नेत्रों के माध्यम से विविध वर्णयुक्त दृश्यों को देखता हुआ उनमें से मनोहारी दृश्यों पर राग और अप्रिय दृश्यों से द्वेष करने लगता है।" इसके पाँच भेद होते हैं18 - 615
अध्याय 11 : भोगोपभोग-प्रबन्धन
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