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अमेरिका की दयनीय आर्थिक दशा110 वर्ष . कर्ज 1950 2 खरब, 57 अरब डॉलर *अमेरिकी बैंकों एवं 1980 9 खरब, 30 अरब डॉलर कम्पनियों द्वारा दुनिया भर 1990 23 खरब, 30 अरब डॉलर से लिए कों को शामिल 2000 56 खरब, 74 अरब डॉलर करने पर यह आँकड़ा 260
खरब डॉलर तक पहुँच 2007 79 खरब डॉलर
जाता है। 2008 90* खरब डॉलर
आज यही स्थिति प्रायः कई अन्य देशों की भी है। ★ आर्थिक विषमता - आर्थिक विषमता सतत बढ़ रही है, आर्थिक संस्थाओं और अन्तर्राष्ट्रीय
संगठनों के अथक प्रयासों के बाद भी विश्व में आज आठ सौ मिलियन से भी अधिक लोग भूखे पेट सोते हैं तथा दो बिलियन से भी अधिक लोग गरीबी रेखा के नीचे जीवन-यापन कर रहे हैं। अमीर-गरीब के बीच की यह खाई निरन्तर बढ़ती ही जा रही है।11 ★ अमर्यादित उपभोग - बाजारों में चित्ताकर्षक उत्पादों की आकृति, रंग, रूप, डिजाइन, पेकिंग आदि से सम्मोहित होकर व्यक्ति की भोगवृत्ति निरन्तर बढ़ती जा रही है, परिणामतः वह
अनावश्यक एवं हानिकारक उपभोगों का सेवन भी अमर्यादित ढंग से कर रहा है। ★ अनावश्यक अपव्यय - आवश्यकता से अधिक उत्पादन होने पर 'खूब उत्पादन' की नीति कभी-कभी 'खूब नुकसान' की जननी बन जाती है, क्योंकि उत्पादों के उत्पादन, परिवहन, भण्डारण एवं रख-रखाव पर तो व्यय होता ही है, साथ ही कभी-कभी अतिरिक्त/अनुपयोगी उत्पादों को नष्ट करने के लिए भी व्यय करना पड़ता है, जैसे - विषम परिस्थितियों में लाखों टन अनाज को समुद्र अथवा बॉयलर में नष्ट करना पड़ जाता है। ★ पर्यावरण प्रदूषण - व्यक्ति ने अर्थ-वासना में पड़कर पर्यावरण का अतिदोहन किया है एवं
उसे प्रदूषित करके भावी पीढ़ी के अस्तित्व के लिए ही खतरा पैदा कर दिया है। ★ पशु धन का ह्रास - अर्थ-प्राप्ति के लोभ में लोभान्ध होकर लाखों टन मांस एवं अन्य
पशु-उत्पादों का प्रतिदिन उत्पादन हो रहा है, जिससे पशु धन भी घट रहा है।12 ★ अमानवता - मानव अपने मूलभूत आचारों, कर्तव्यों एवं नियमों की भी उपेक्षा कर दानव के समान कार्य करने में लगा है, जैसे -
• हत्या की सुपारी लेना या देना। • सम्पत्ति या धन हड़पना। • दूसरों की जमीन को हड़पना अथवा उस पर अतिक्रमण करना।
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अध्याय 10 : अर्थ-प्रबन्धन
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