________________
स्त्रीवेद एवं नपुंसकवेद । आगमिक व्याख्या साहित्य में परिग्रह के एक अन्य प्रकार से भी चौदह भेद बताए गए हैं - मिथ्यात्व, राग, द्वेष, क्रोध, मान, माया, लोभ, हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा और वेद ।155 (2) बाह्य परिग्रह
अंतरंग परिग्रह के निमित्त से जिन बाह्य वस्तुओं का ग्रहण एवं संग्रह किया जाता है, उन्हें बाह्य-परिग्रह कहते हैं। चूंकि पदार्थ अनगिनत हैं, अतः बाह्य-परिग्रह के भेद भी अनगिनत हो सकते हैं, परन्तु भगवतीसूत्र में मोटे तौर पर इनके तीन भेद किए गए हैं156 - 1) कर्म परिग्रह – आत्मा के द्वारा राग-द्वेष के वशीभूत होकर ग्रहण की जाने वाली कर्म--वर्गणाओं
(पुद्गल परमाणुओं का एक समूहविशेष) के पुद्गल। 2) शरीर परिग्रह – आत्मा के द्वारा धारण किया जाने वाला शरीर। 3) बाह्य पात्रादि परिग्रह – आत्मा के द्वारा मूर्छापूर्वक संगृहीत की जाने वाली पात्रादि वस्तुएँ। इसे निम्न चित्र के माध्यम से आसानी से समझा जा सकता है -
शेष संसार
पात्रादि बाह्य परिग्र
शरीर परिग्रह कर्म परिग्रह
आत्मा
और भी, आचार्य हरिभद्र ने बाह्य पात्रादि परिग्रह के नौ भेदों का निरूपण भी किया है।157 यह निम्न तालिका से स्पष्ट है -
जीवन-प्रबन्धन के तत्त्व
570
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org