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अर्थ का स्थान व्यक्ति का स्थान
परिधि
केन्द्र
साधन
साध्य ध्येय लक्ष्य स्वामी
अर्थ का स्थान व्यक्ति का स्थान नचाने वाला कठपुतली अधिकारी अधीनस्थ शासक
शोषित अपेक्षित उपेक्षित
गौण
माध्यम मार्ग सेवक
प्रमुख
★ असन्तुलित जीवन - अर्थ की तुलना में जीवन के अन्य पक्षों की अत्यधिक उपेक्षा हो रही है,
जैसे – शरीर, परिवार, समाज, पर्यावरण, धर्म, अध्यात्म आदि। वस्तुतः, 'पैसे से सब कुछ मिल जाएगा', ऐसा मानने वाले मानव ने आज पैसे के लिए अपना सब कुछ दाँव पर लगा दिया है।105 ★ दुष्कर्म – व्यक्ति अर्थ के लिए कुछ भी करने को तैयार है। यही कारण है कि शराब, सिगरेट, पान-मसाला, शीतल-पेय आदि का सेवन एवं जुआ, अपहरण, हत्याएँ, नरसंहार आदि दुष्कार्य
आजकल खुलेआम हो रहे हैं।106 * अस्वस्थ प्रतिस्पर्धा - आज व्यक्ति पर सबसे अधिक अमीर बनने का जुनून सवार है। वह सिर्फ अर्थ-प्राप्ति से नहीं, अपितु दूसरों की तुलना में सबसे अधिक अर्थ-प्राप्ति करके सन्तुष्ट होना चाहता है, जो कभी सम्भव नहीं है। इससे सामाजिक विघटन की दशा भी उत्पन्न हो रही है। दुनिया की सारी पूंजी कुछ हजार लोगों के हाथ में ही केन्द्रित हो गई है।107 यही आर्थिक विषमता विद्रोह की जननी है, क्योंकि जहाँ एक तरफ 40% जनता गरीबी रेखा के नीचे जी
रही है,108 वहीं 1-2% लोग अति अमीरी की विलासिता में डूबे हुए हैं। ★ बाहर में दिवाली, भीतर में दिवाला - अधिकांश लोग बाहर तो ऊँचे जीवन-स्तर का प्रदर्शन कर रहे हैं, जबकि वास्तविकता में वे कर्ज में डूबे हुए हैं। इस प्रकार ‘ढोल में पोल' जैसी स्थिति है, जिसका परिणाम यह है कि कई सुप्रतिष्ठित एवं नामीगिरामी खानदान भी करोड़पति से रोड़पति हो रहे हैं। साथ ही कइयों के उद्योग सील तथा सम्पत्ति कुर्क हो रही है। सन् 2009 में आए विश्वव्यापी आर्थिक मन्दी का मुख्य कारण यही अविचारित ऋण लेने की वृत्ति है। गौर करने योग्य है कि अकेले अमेरिका में ग्यारह करोड़ परिवार हैं, जिनके पास 120 करोड़ क्रेडिट कार्ड हैं, जबकि अधिकतम परिवारों में दो ही सदस्य हैं।109
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जीवन-प्रबन्धन के तत्त्व
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