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ये साधन विविध मनोज्ञ-उत्पादों के लिए सूचित, प्रभावित एवं सम्मोहित करके व्यक्ति की सुप्त वासनाओं को जगा देते हैं। ये वासनाएँ तब तक शान्त नहीं होती, जब तक कि वस्तु का उपभोग न हो जाए। इन साधनों की अनेकानेक खामियाँ हैं, जैसे - • ये अनावश्यक वस्तुओं को खरीदने और भोगने के लिए व्यक्ति पर मनोवैज्ञानिक रूप से
दबाव डालते हैं। • विज्ञापनों में भद्दी पोशाकों, अश्लील दृश्यों एवं फूहड़ शब्दों का प्रयोग होने से सामाजिक
सभ्यता और संस्कृति का पतन होता है। • इनमें धन का भी बहुत अधिक अपव्यय होता है। इसका एक उदाहरण इस प्रकार
MischarSARDASTI
भारत
वार्षिक विज्ञापन खर्च 1972
2002 *सन् 2012 में 30,704 74 करोड़ रूपए कई गुना अधिक* करोड़ रूपए खर्च होने अमेरिका
23,130 मीलियन डॉलर लगभग हजार गुना का अनुमान है। • विज्ञापनों में अधिकांशतः झूठी अथवा अतिशयोक्तिपूर्ण जानकारियाँ ही दी जाती हैं। किसी ने कहा है - किसी समाचार पत्र की एक झलक लेने अथवा दूरदर्शन के समक्ष चन्द घण्टे बैठने से यह स्पष्ट हो जाता है कि अधिकतर विज्ञापन झूठे, अरुचिकर एवं
सन्तापकारी होते हैं।101 ★ आधुनिक अर्थनीति में कार्य की नैतिकता पर तो जोर है ही नहीं, साथ ही कार्यविधि में भी
नैतिकता का स्थान नहीं हैं। यहाँ अर्थोपार्जन हेतु अपनाए जा रहे अवैधानिक शॉर्ट-कट्स, जैसे - रिश्वतखोरी, घोटाले, गबन आदि की रोकथाम के लिए नैतिक प्रशिक्षण की कोई व्यवस्था नहीं है। दूसरे शब्दों में, अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य एवं अपरिग्रह के लिए कोई सम्माननीय स्थान नहीं है। ★ इसमें उत्पादन एवं उपभोग का महत्त्व इतना अधिक है कि प्राकृतिक संसाधनों (पर्यावरण) के
अतिदोहन एवं प्रदूषण पर कोई नियंत्रण नहीं है। ★ आधुनिक अर्थनीति में निम्न प्रणालियों या व्यवस्थाओं को विशेष प्रोत्साहन दिया जा रहा है, जिनमें से कुछ उचित हैं, तो कुछ अनुचित भी -
• वैश्वीकरण (Globalization) • निजीकरण (Privatisation) • उदारीकरण (Liberalisation) • विदेशी कम्पनियों को बढ़ावा (Promotion of Multinational Companies) • यान्त्रिकीकरण एवं स्वचालीकरण (Mechanisation & Automation)
जीवन-प्रबन्धन के तत्त्व
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