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उपयोगिता तो नष्ट हो जाती है, किन्तु एक अन्तराल के बाद पुनः इच्छा जाग जाती है और वह एक नई आवश्यकता बन जाती है। इससे पुनः माँग उठती है, माँग लिए उत्पादन बढ़ाया जाता है और उपभोक्ता बाजार से वस्तु का क्रय कर उसका उपभोग करता है। इस प्रकार यह अन्तहीन सिलसिला बना ही रहता है। इतना ही नहीं, ये इच्छाएँ सतत बढ़ती ही चली जाती हैं, इसे ही आधुनिक अर्थशास्त्री प्रगतिशील आर्थिक- चक्र (Developing Economic cycle) कहते हैं। आधुनिक अर्थनीति का मुख्य आधार ही है आर्थिक-चक्र का विकास करना और इसकी कुंजी है। व्यक्ति के भीतर भौतिक इच्छाओं को उकसाना और भड़काना ।
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★ आधुनिक अर्थनीति में 'खूब उत्पादन और खूब उपभोग' के सूत्र को प्रधानता दी गई है। ऐसा माना जाता है कि इससे निम्न लाभ प्राप्त होंगे 94.
• अधिक उत्पादन से गरीबी मिटेगी और धनाढ्यता बढ़ेगी।
• अधिक उपभोग से जीवन स्तर उन्नत होगा, जीवन सुविधामय एवं विलासितायुक्त बनेगा 195
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• बढ़ती हुई जनसंख्या को रोजगार मिल सकेगा ।
• विज्ञान एवं तकनीकी - विकास को प्रोत्साहन मिलेगा और इससे प्रकृति पर मनुष्य का प्रभुत्व बढ़ेगा ।
• व्यक्ति की व्यस्तता बढ़ जाने से सामाजिक विकृतियों, जैसे क्लेश - कलह, मारपीट, की गप-शप, तमाशागिरी, प्रमाद आदि पर स्वतः 'खाली दिमाग शैतान का घर' ।
आपसी रंजिश, दंगे-फसाद, व्यर्थ अंकुश लग सकेगा। कहावत भी है
• इसके अतिरिक्त विश्वव्यापी आर्थिक प्रतिस्पर्धाओं का डटकर सामना हो सकेगा तथा विश्व में राष्ट्रीय वर्चस्व स्थापित हो सकेगा ।
• राष्ट्रीय वर्चस्व स्थापित होने से राष्ट्र की भौगोलिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक एवं सामरिक सुरक्षा सुदृढ़ होगी ।
★ आधुनिक अर्थनीति में इच्छाओं को उकसाने, बढ़ाने एवं भड़काने के लिए विविध संचार - साधनों (Mass Communication) को बहुत अधिक महत्त्व दिया गया है। इन साधनों के मुख्यतः चार प्रकार हैं
1) विज्ञापन ( Advertisement)
2) लोक - प्रचार (Publicity)
3) व्यक्तिगत- विपणन (Personal Selling)
4) विपणन - प्रोत्साहन (Sales Promotion )
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अध्याय 10: अर्थ-प्रबन्धन
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